________________ एमेव भाववित्तं हंदि चरित्तं पि निअमओ णेअं। इत्थं सुसामिजणगेहमाइतुल्ला उ गुरुमाई // 684 // एएसि पभावेणं विसुद्धठाणाण चरणहेऊणं / निअमादेव चरित्तं वड्डइ विहिठा(से)वणपराणं .. // 685 // वित्तम्मि सामिगाईसु नवर विभासा वि दिव्वजोएण। आणाविराहणाओ आराहणाओं ण उ एत्थ // 686 // गुरुमाइसु जइअव्वं एसा आण त्ति भगवओ जेणं। तब्भंगे खलु दोसा इअरम्मि गुणो उ नियमेण // 687 // तम्हा तित्थयराणं आराहतो विसुद्धपरिणामो। गुरुमाइएसु विहिणा जइज्ज चरणट्ठिओ साहू // 688 // गुरुगुणजुत्तं तु गुरुं इब्भो सुस्सामिअं व ण मुएज्जा। चरणधणफलनिमित्तं पइदिणगुणभावजोएण // 689 // गुरुदंसणं पसत्थं विणओ य तहा महाणुभावस्स / अन्नेसि मग्गदंसण निवेअणा पालणं चेव // 690 // वेयावच्चं परमं बहुमाणो तह य गोअमाईसु। . तित्थयराणाकरणं सुद्धो नाणाइलंभो अ // 691 // अंगीकयसाफल्लं तत्तो अ परो परोवगारो वि। सुद्धस्स हवइ एवं पायं सुहसीससंताणो // 692 // इअ निक्कलंकमग्गाणुसेवणं होइ सुद्धमग्गस्स / जम्मंतरे वि कारणमओ अनिअमेण मोक्खो त्ति // 693 // एवं गुरुकुलवासो परमपयनिबंधणं जओ तेणं / तब्भवसिद्धीएहि वि गोअमपमुहेहिं आयरिओ // 694 // ता एअमायरिज्जा चइऊण निअं कुलं कुलपसूओ। . इहरा उभयच्चाओ सो उण नियमा अणत्थफलो . // 695 / / 58