________________ अविरतिमूलं कम्मं तत्तो अ भवो त्ति कम्मखवणत्थं / / ता विरई कायव्वा सा य वया एव खयहेऊ // 612 // अहिगयसत्थपरिण्णाइगाउ परिहरणमाइगुणजुत्ता / पिअधम्मवज्जभीरू जे ते वयठावणाजोगा // 613 // पढिए अ कहिअ अहिगय परिहर उवठावणाइ सो कप्पो। छक्कं तीहिं विसुद्धं परिहर नवएण भेएणं // 614 // . अप्पत्ते अकहित्ता अणभिगयऽपरिच्छणे अ आणाई / दोसा जिणेहि भणिआ तम्हा पत्तादुवट्ठावें // 615 // सेहस्स तिन्नि भूमी जहण्ण तह मज्झिमा य उक्कोसा। राइंदि सत्त चउमासिआ य छम्मासिगा चेव // 616 // पुव्वोवट्ठपुराणे करणजयट्ठा जहनिआ भूमी। उक्कोसा उ दुमेहं पडुच्च अस्सद्दहाणं च // 617 // एमेव य मज्झिमिया अणहिज्जते असद्दहंते अ। भाविअमेहाविस्स वि करणजयट्ठा य मज्झिमिया ... // 618 // एअं भूमिमपत्तं सेहं जो अंतरा उवट्ठावे। सो आणाअणवत्थं मिच्छत्तविराहणं पावे // 619 // रागेण व दोसेण व पत्ते वि तहा पमायओ चेव / जो न वि उट्ठावेई सो पावइ आणमाईणि // 620 // पिअपुत्तमाइआणं (समगं) पत्ताणमित्थ जो भणिओ। पुव्वायरिएहि कमो तमहं वोच्छं समासेणं // 621 // पितिपुत्त खुडु थेरे खुड्डग थेरे अपावमाणम्मि। सिक्खावण पनवणा दिटुंतो दंडिआईहिं // 622 // थेरेण अणुण्णाए उवठाणिच्छे व ठंति पंचाहं। तिपणमणिच्छिऽवुवरि वत्थुसहावेण जाऽहीअं // 623 // 52