________________ पुरिसं तस्सुवयारं अवयारं चऽप्पणो अ नाऊणं। . कुज्जा वेआवडिअं आणं काउं निरासंसो // 540 // भरहेण वि पुव्वभवे वेआवच्चं कयं सुविहिआणं / सो तस्स फलविवागेण आसि भरहाहिवो राया // 541 // भुंजित्तु भरहवासं सामन्नमणुत्तरं अणुचरित्ता / अट्ठविहकम्ममुक्को भरहनरिंदो गओ सिद्धि . // 542 // पासंगिअभोगेणं वेआवच्चमिअ मोक्खफलमेव। .. आणाआराहणओ अणुकंपादि व्व विसंयम्मि // 543 // सुहतरुछायाइजुओ अह मग्गो होइ कस्सयई पुरस्स। एक्को अण्णो णेवं सिवपुरमग्गो वि इअ णेओ // 544 // अणुकंपाविओं पढमो. सुहपरगामीण सो जिणाईणं / तयजत्तगो उ इअरो सदेव सामण्णसाहूणं // 545 // ता नत्थि एत्थ दोसो पच्चक्खाए वि निरहिगरणम्मि। गुणभावाओं अ तहा एवं च इमं हवइ सुद्धं // 546 // फासिअं पालिअंचेवं, सोहिअंतीरिअं तहा। किट्टिअमाराहिअंचेव, जएज्ज एआरिसम्मि अ . // 547 // उचिए काले विहिणा पत्तं जं फासि तयं भणिअं। तह पालिअंतु असई सम्मं उवओगपडिअरियं // 548 // गुरुदाणसेसभोअणसेवणयाए उ सोहिअं जाण / पुण्णे वि थेवकालावत्थाणा तीरिअं होइ // 549 // भोअणकाले अमुगं पच्चक्खायं ति भुंजि किट्टिअयं / . आराहिअं पगारेहिं सम्ममेएहिं निट्ठविअं // 550 // एअं पच्चक्खाणं विसुद्धभावस्स होइ जीवस्स। चरणाराहणजोगा निव्वाणफलं जिणा बिंति // 551 // 46