________________ // 444 // कालो गोअरचरिअं थंडिल्ला वत्थपत्तपडिलेहा। संभरऊ सो साहू जस्स व जं किंचि णाउत्तं // 444 // जइ पुण निव्वाघाओ आवासं तो करंति सव्वे वि। सड्ढाइकहणवाघाययाए पच्छा गुरू ठंति // 445 // सेसा उ जहासत्ति आपुच्छित्ताण ठंति सट्ठाणे। सुत्तत्थसरणहेउं आयरिअ ठिअम्मि देवसि // 446 // जो हुज्ज उ असमत्थो बालो वुड्डो व रोगिओ वा वि। सो आवस्सयजुत्तो अच्छिज्जा णिज्जसपेही // 447 // एत्थ उ कयसामइया पुव्वं गुरुणो अ तयवसाणम्मि। .. अइआरं चिंतंती तेणेव समं भणंतऽण्णे // 448 // आयरिओ सामइयं कड्डइ जाए तहट्ठिया ते वि।। ताहे अणुपेहंती गुरुणा सह पच्छ देवसिअं / / .449 // जा देवसिअं दुगुणं चिंतेइ गुरु अहिंडिओ चिटुं / बहु वावारा इअरे एगगुणं ताव चितिति // 450 // मुहणंतगपडिलेहणमाईअं तत्थ जे अईआरा / कंटकवग्गुवमाए धरंति ते णवरि चित्तम्मि // 451 // संवेगसमावण्णा विसुद्धचित्ता चरित्तपरिणामा।। चारित्तसोहणट्ठा पच्छा वि कुणंति ते एअं // 452 // नमुक्कार चउव्वीसग कितिकम्माऽऽलोअणं पडिक्कमणं। किइकम्म दुरालोइअ दुपडिकते य उस्सग्गा उस्सग्गसमत्तीए नवकारेणमह ते उ पारिति / चउवीसगंति दंडं पच्छा कटुंति उवउत्ता // 454 // संडंसं पडिलेहिअ उवविसिअ तओ णवर मुहपोत्ति / . पडिलेहिउँ पमज्जिय कायं सव्वे पि उवउत्ता . // 455 / / // 453 //