________________ // 324 / / // 325 // // 326 // // 327 // // 328 // // 329 // कायनिरोहे वा से पायच्छित्तमिह जं अणुस्सरणं / तं विहिआणुट्ठाणं कम्मक्खयकारणं परमं जइ एवं ता किं पुण अन्नत्थ वि सों न होइ नियमेण / पच्छित्तं होइ च्चिअ अणिअमओ जं अणुस्सरणे चिंतित्तु जोगमखिलं नवकारेणं तओ उ पारित्ता। पढिऊण थयं ताहे साहू आलोअए विहिणा वक्खित्त पराहुत्ते पमत्ते मा कयाइ आलोए / आहारं च करिती नीहारं वा जइ करेइ कहणाई वक्खित्ते विगहाई पमत्त अन्नओ व मुहे। . अंतर अकारगं वा नीहारे संक मरणं वा अव्वक्खित्तं संतं उवसंतमुवट्ठियं च नाऊणं / अणुनविउं मेहावी आलोएज्जा सुसंज(य)ए कहणाई अवक्खित्तं कोहादुवसंत वट्ठियमुवत्तं / संदिसह त्ति अणुण्णं काऊंण विदिन्न आलोए पढें चलं च भासं मूअं तह ढड्ढरं च वज्जिज्जा / आलोएज्ज सुविहिओ हत्थं पत्तं च वावारं करपायभमुहसीसच्छिहोट्ठमाईहिं नच्चिअं नाम। चलणं हत्थसरीरे चलणं काएण भावेण गारस्थिअभासाओ य वज्जए मूअं ढड्डरं च सरं। आलोए वावारं संसट्ठिअरे य करपत्ते एअद्दोसविमुक्को गुरुणो गुरुसंमयस्स वाऽऽलोए। जं जह गहिअं तु भवे पढमाया जा भवे चरमा काले अपहुप्पंते उव्वाओ वा वि ओहमालोए। . वेला गिलाणगस्स व अइगच्छइ गुरु व उव्वाओ // 330 // // 331 // // 332 // // 334 / / // 335 // 28