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________________ आणापरतंतो सो सा पुण सव्वण्णुवयणओ चेव / एगंतहिआ विज्जगणाएणं सव्वजीवाणं // 1176 // भावं विणा वि एवं होइ पवित्ती ण बाहए ऐसा / सव्वत्थ अणभिसंगा विरईभावं सुसाहुस्स // 1177 // उस्सुत्ता पुण बाहइ समइविगप्पसुद्धा वि णिअमेणं / गीअणिसिद्धपवज्जणरूवा णवरं णिरणुबंधा // 1178 / इअरा उ अभिणिवेसा इअरा ण य मूलछिज्जविरहेणं / होएसा एत्तो च्चिअ पुव्वयरिआ इमं चाहु // 1179 / / गीअत्थो उ विहारो बिइओ गीअत्थमीसिओ भणिओ / एत्तो तइअ विहारो णाणुण्णाओ जिणवरेहिं // 1180 // गीअस्स ण उस्सुत्ता तज्जुत्तस्सेयरस्स वि तहेव। णिअमेण चरणवं जं न जाउ आणं विलंघेइ // 1181 // न य गीअत्थो अण्णं ण णिवारइ जोग्गयं मुणेऊणं / एवं दोण्ह वि चरणं परिसुद्धं अण्णहा णेव . // 1182 // ता एव विरइभावो संपुण्णो एत्थ होइ णायव्वो / णिअमेणं अट्ठारससीलंगसहस्सरूवो उ // 1183 // ऊणत्तं ण कयाइ वि इमाण संखं इमं तु अहिगिच्च / जं एअधरा सुत्ते णिद्दिट्ठा वंदणिज्जा उ . // 1184 // ता संसारविरत्तो अणंतमरणाइरूवमेअंतु। गाउं एअविउत्तं मोक्खं च गुरूवएसेणं. // 1185 // परमगुरुणो अ अणहे आणाएँ गुणे तहेव दोसे अ। मोक्खत्थी पडिवज्जिअ भावेण इमं विसुद्धेणं // 1186 // विहिआणुट्ठाणपरो सत्तणुरूवमिअरं पि संधंतो। अण्णत्थ अणुवओगा खवयंतो कम्मदोसे वि // 1187 // ce
SR No.004452
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages310
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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