________________ सिय णाणुमओ एसो बुद्धेणं किंतु अप्पणा चेव / दाणवतीहिं सम्मं पवत्तिओ कुसलमूलत्थं // 996 // : एवं पि हंत दोण्ह वि बुद्धेणाणणुमयम्मि वत्थुम्मि / कह ण पयट्टताणं परलोगविराहणा होइ ? // 997 // दाणवतीणमणुमतो अह भिक्खूणं पि सुद्धभावाणं / तप्फलपरिभोगो इय परलोगविराहणा किह णु ? // 998 // . आरंभणिट्ठियं पिंडमादि भुंजंतगाण भिक्खूणं / तत्थ पवित्तीओ अणुमतीएँ भिक्खुत्तणमजुत्तं // 999 // . तिविहं तिविहेण जओ पावं परिहरति जो निरासंसो। .. भिक्खणसीलो य तओ भिक्खु त्ति निदरिसिओ समए॥ 1000 // अह उस्सग्गेणेसो धूतगुणासेवणेक्कतण्णिट्ठो / अववादेण उ आरंभनिट्ठियं चेव सेवंतो' // 1001 // चरणपरिणामबीयं जं न विणासेइ कज्जमाणं पि / तमणुट्ठाणं सम्मं अववादपदं मुणेतव्वं // 1002 // जं पुण नासेइ तयं न तय दिट्ठमिह सत्थगारेहि। तब्भावे वि गिहीहिं अइप्पसंगो धुवो होइ // 1003 // गामादिपरिग्गहओ तव्वावारो तओ य चित्तस्स / नियमेण परिकिलेसो तओ य चरणस्स नासो उ // 1004 // इय अववादपदेण वि नरिंदलील विलंबमाणाण / मग्गचुयाणं विदुसे पडुच्च भिक्खुत्तणमजुत्तं // 1005 // छाउइगामकोडीवइणो भरहस्स सुद्धभावस्स / चरणपरिणामओ भे केवलनाणं समुप्पन्नं // 1006 // चरणपरिणामबीयं गामादिपरिग्गहो ण णासेइ / इय दोण्ह वि अम्हाणं सिद्धमिणं किन लक्खेसि ? || 1007 // 84