________________ // 768 // णो हेउअभावो च्चिय तओ मओऽभावतो अहेऊओ। णेव पदत्यंतरमो जुत्तो पुव्वुत्तदोसाउ इट्ठो य वत्थुधम्मो पतिणियतो जं च ता ण सव्वेसि / ण य माणबाधितो सो सम्मादेवलंभभावातो // 769 // वेययतो पतिसमयं चित्तं कम्मं सवीरिउक्करिसा / सो होइ जीवधम्मो जो तस्संपत्तिहेउ त्ति // 770 // तम्मि य सती अवत्ता खंतादिगुणा वि इतरवेक्खाए / तस्सेवणाए वि तओ संपत्ती तस्स तं जाव // 771 // एसा य वत्थुतो निग्गुणेति असई पि वन्निया समए / णियमा ण सम्महेतू सम्मं पुण मोक्खहेउ त्ति // 772 // एतेण सम्मलाभे कह णु अणंतभवभावितो सिग्धं / संसारो त्ति जिआणं नासइ ? एयपि परिहरितं // 773 // ओहेण दीहकालो जम्हा पडिवक्खभावणाए. वि / सम्मत्तं तीऍ फलं केवलमिव चरणकिरियाए // 774 // जह केवलम्मि पत्ते तेणेव भवेण वनिओ मोक्खो / पगरिसगुणभावातो तह संमत्ते वि सो समओ // 775 // पगरिसगुणो य एसो जम्हा समए वि सव्वजीवाणं / / गेवेज्जगोववातो भणितो तेलोक्कदंसीहिं. // 776 // सो दव्वसंजमेणं पगरिसरूवेण जिणुवृदिटेणं / तब्भावे वि ण सम्मं एवमिदं पगरिसगुणो त्ति // 777 // तब्भावम्मि य नियमा परियट्टभ्रूणमो उ संसारो / ण य. सो सव्वेसि जओ ता तब्भावे वि तं नत्थि // 778 // पत्तुक्कस्सठितीणं विचित्तपरिणामसंगयाणं च / सव्वेसि जीवाणं कम्हा णो वीरिउक्करिसो ? // 779 // ... . 15