________________ // 939 // एयं च विसयसुद्धं एगंतेणेव जं तओ जुत्तं / / आरोग्गबोहिलाभाइपत्थणाचित्ततुल्लं ति जम्हा एसो सुद्धो अणियाणो होइ भावियमईणं / तम्हा करेह सम्मं जह विरहो होइ कम्माणं // 940 // // 20 // उपधानसमर्थनपञ्चाशकम् // नमिऊण महावीरं वोच्छं नवकारमाइ उवहाणे / किपि पइट्ठाणमहं विमूढ संमोह महणत्थं // 941 / / जं सुत्ते निद्दिटुं पमाणमिह तं सुओवयाराइ। आयाराइणं जह जहुत्तमुवहाण निम्महणं . // 942 // वुत्तं च सुए नवकार-इरिय पडिकमण सक्कथयविसयं / चेइय चउवासत्थय सुयत्थएसुं च उवहाणं // 943 // किं पुण सुत्तं तं इह जत्थ नमोक्कारमाइ उवहाणं / उवइट्ट आह गुरु .महानिसीहक्ख सुयखंधे . // 944 // एसो वि कह पमाणं नंदीए हंदि कित्तणाउ ति / जं तत्थेव निसीहं महानिसीहं च संलत्तं // 945 // अह तं न होइ एयं एवं आयारमाइ वि तयन्नं / तुल्ले वि नंदिपाढे को हेऊ विसरिसत्तम्मि // 946 // अह दुब्बलिसूरीणं पराभवत्थं कयं सबुद्धीए / गोटेणं ति मयं नो इमं पि वयणं अविन्नृणं // 947 // पुट्ठमबद्धं कम्मं अप्परिमाणे च संवरणमुत्तं / जं तेण दुगं एवं तं चिय अपमाणमक्खायं // 948 // सेसं तु पमाणत्तेण कित्तियं गोट्ठमाहि सुत्तं पि / इग दुग मयभेय च्चिय जं सुत्ते निण्हवा वुत्ता - // 949 // 284