________________ उवसंपया य तिविहा णाणे तह दंसणे चरिते य / दंसणणाणे तिविहा दुविहा य चरित्तमट्ठाए // 586 // वत्तणसंधणगहणे सुत्तत्थोभयगया उ एस त्ति / वेयावच्चे खमणे काले पुण आवकहियादी // 587 // संदिट्ठो संदिगुस्स चेव (संपज्जइ उ एमाई) संपत्तीओ एमादि / चउभंगो एत्थं पुण पढमो भंगो हवइ सुद्धो . // 588 // . अथिरस्स पुव्वगहियस्स वत्तणा जं इहं थिरीकरणं / तस्सेव पएसंतरणट्ठस्सणुबंधणा घडणा' // 589 / / गहणं तप्पढमतया सुत्तादिसु णाणदंसणे चरणे / वेयावच्चे खमणे सीदणदोसादिणाऽण्णत्थ // 590 // इत्तरियादिविभासा वेयावच्चम्मि तह य खवगे वि। अविगिट्ठविगिट्ठम्मि य गणिणा गच्छस्स पुच्छाए // 591 // एवं समायारी कहिया दसहा समासओ एसा / संयमतवड्डगाणं णिग्गंथाणं महरिसीणं . // 592 // एवं सामायारी जुंजता चरणकरणमाउत्ता / - साहू खवेंति कम्मं अणेगभवसंचियमणंतं // 593 // जे पुण एयविउत्ता सम्गहजुत्ता जणम्मि विहरंति / तेसिं तमणुट्ठाणं णो भवविरहं पसाहेई // 594 // // 13 // पिण्डविशुद्धिपञ्चाशकम् // नमिऊण महावीरं पिंडविहाणं समासओ वोच्छं। . समणाणं पाउग्गं गुरूवएसाणुसारेणं // 595 // सुद्धो पिंडो विहिओ समणाणं संजमायहेउत्ति। . सो पुण इह विण्णेओ उग्गंमदोसादिरहितो जो . // 516 // 54