________________ सा इह परिणयजलदलविसुद्धिरूवा उ होइ णायव्वा / अण्णारंभणिवित्तीएँ अप्पणाहिट्ठणं चेवं // 327 // एवं च होइ एसा पवित्तिरूवा वि भावतो णवरं / अकुसलणिवित्तिरूवा अप्पबहुविसेसभावेणं // 328 // एत्तो चिय णिद्दोसं सिप्पादिविहाणमो जिणिंदस्स / लेसेण सदोसं पि हु बहुदोसनिवारणत्तेण // 329 // . वरबोहिलाभओ सो सम्वुत्तमपुण्णसंजुओ भयवं / एगंतपरहियरतो विसुद्धजोगो महासत्तो , // 330 // . जं बहुगुणं पयाणं तं णाऊणं तहेव दंसेइ / ते रक्खंतस्स ततो जहोचितं कह भवे दोसो ? // 331 // तत्थ पहाणो अंसो बहुदोसनिवारणाउ जगगुरुणो / नागादिरक्खणे जह कड्डणदोसे वि सुहजोगो // 332 // खड्डातडम्मि विसमे इट्ठसुयं पेच्छिऊण कीलंतं / तप्पच्चवायभीया तदाणणट्ठा गया जणणी // 333 // दिट्ठो य तीए णागो तं पति एंतो दुतो उ खड्डाए / तो कड्डितो तगो तह पीडाइ वि सुद्धभावाए // 334 // एयं च एत्थ जुत्तं इहराहिगदोसभावतोऽणत्थो / तप्परिहारेऽणत्थो अत्थो च्चिय तत्तओ णेओ // 335 // एव निवित्तिपहाणा विण्णेया भावओ अहिंसेयं / जयणावओ उ विहिणा पूजादिगया वि एमेव // 336 // णिप्फाइऊण एवं जिणभवणं सुंदरं तहिं बिंबं / / विहिकारियमह विहिणा पइट्ठवेज्जा लहुं चेव // 337 // एयस्स फलं भणियं इय आणाकारिणो उ सड्डस्स / .. चित्तं सुहाणुबंधं णिव्वाणंतं जिणिदेहि . // 338 // 232