________________ पुच्छा ण केणइ ततो रायाऽऽह न एयमन्नहा भंते ! / आगंतुगम्मि संका साहण रायागमण जाणं // 295 // विलितो रायणुसासण मिच्छादुक्कड कुमार विनवणं / / जोएह ते गुणेहिं इच्छामी पुच्छह तते त्ति // 296 // न चएंति तत्थ गमणं मुहजोयण कहण पुच्छ संवेगो। तह बीजब्भासाओ संजोयण,चरिय निक्खमणं // 297 // रायकुमारे चिन्ता, उवगारी सुट्ठ अम्ह भगवं ति / / इयरस्स वि एस च्चिय, मणागमविहिम्मि उ पओसो // 298 // अपडिक्कमणं कालो देवोववाओ उदार मो भोगा। . . . . चवण निमित्ते पुच्छा बोही ते दुल्लहा भयवं ! // 299 // किन्तु निमित्तं थेवं न महाविसयं कता णु लाभ त्ति ? / एत्थाणंतरजम्मे, कत्तो ? नियभातिजीवाओ // 300 // कहिं सो ! कोसंबीए किनामो ? मूयगो उ बितिएणं / पढमेणऽसोगदत्तो किमेयमिति पुव्वभवकहणा . // 301 / / एत्थ उ तावससेट्ठी, आरंभजुओ मओ गिहे कोलो / सरणं सूवारीए, णिहओ मज्जारिमन्नुहतो // 302 // तत्थोरग सूयारी भय सरणं बोलघातितो जातो। नियपुत्तसुओ सरणं मूयव्वय कुमर चउणाणी // 303 // खेत्ताभोगे णाणं, समओ एयस्स बोहिलाभम्मि / आलोचिऊण साहू संघाडगपेसणं पाढो तावस ! किमिणा मूयव्वएण पडिवज्ज जाणिउं धम्मं / . मरिऊण सूयरोरग जातो पुत्तस्स पुत्तो त्ति // 305 // विम्हय वंदण पुच्छा गुरु जाणति कत्थ सो महांभागो ? / उज्जाणे तग्गमणं वंदण कहणा य संबोही // 306 // // 304 // 142