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________________ आवक ज्यादे होने से जीर्णोद्धार तरिक्षा वगैरह बहुत बडे बडे लाभ होंगे. और इस शास्त्रार्थ में जिसकी प्ररूपणा झूठी ठहरे उस हारनेवाले को राज्यद्वारी या आपसके क्लेशकी--मकशीजी, अंतरीक्षजी, समेतशिखरजी, गिरनारजी वगैरह में से कोई भी एक बडे तीर्थकी आशातना मिटाने का दंड दिया जावेगा और जब तक करार मुजब तीर्थकी आशातना नहीं मिटावेगा तब तक उसको संघ बाहिर रहना पडेगा. इस करार से भी यदि आपकी 4 पत्रिकाओंकी सब बातों को सत्य ठहराने की हिम्मत हो तो शास्त्रार्थ करिये. न्याय मार्गका उलंघन कर दिया और गालियां पर आगये, मिच्छामि दुक्कडं देनेके लायक रहे नहीं. इसलिये यह करार लिखना पडा है. अगर इच्छा हो तो मंजूर करो.. संवत् 1979 वैशाख सुदी 13. हस्ताक्षर मुनि--मणिसागर, इन्दोर. ऊपर के सब लेखसे सर्व श्रीसंघ आपही विचार कर सकता है कि इस शास्त्रार्थ से तीर्थरक्षा वगैरह का शासन को कितना बडा भारी लाभ होता. मैं उन्हों के स्थानपर उनके बुलानेसे वैशाख सुदी ९के रोज तथा पूर्णिमाके रोज दोनों बख्त शास्त्रार्थ करनेके लिये जानेको तयार था. मगर उन्होंने 4 साक्षी बनाकर न्यायसे शास्त्रार्थ करनेका मंजूर किया नहीं. सत्यग्रहण व हारने वालेको तीर्थ रक्षाकी शिक्षा करने वगैरह बातों की सहीभी दी नहीं. और क्रोधसे गालियोंपर आकर अपनी मर्यादा भूलगये. नियमानुसार जाहिर सभामें या उनके स्थानपर खानगी में शास्त्रार्थ किये बिना व्यर्थ यहांके संघका और गालियोंका सरणा लेकर पूर्णिमा के रोज भी ठहरे नहीं बडी ही फजर विहार कर गये. इस प्रकारकी व्यवस्था से सर्व संघ उनके न्यायकी और सत्यताकी परीक्षा आपसेही कर लेवेगा इति शुभम्. संवत् 1979 वैशाख सुदी 15. ___हस्ताक्षर मुनि-मणिसागर, इन्दौर.
SR No.004449
Book TitleDevdravya Nirnay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJinkrupachandrasuri Gyanbhandar
Publication Year1917
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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