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________________ 6 मेरे साथ शास्त्रार्थ करने का मंजूर कर लिया उसके लिये ही जलदी से इन्दोर बुलवाया. अब अपनी 4 पत्रिकाओं की-खोटी खोटी बातों को शास्त्रार्थ में साबित करनेकी हिम्मत नहीं और अपनी प्ररूपणा को पीछी खींचकर सर्व संघसे मिच्छामि दुक्कडं देते भी लज्जा आती है. इसलिये योग्यता अयोग्यता के नाम से मुंह छुपाकर शास्त्रार्थ से पीछे हटकर क्यों भगते हो. पहिले शास्त्रार्थ मंजूर करती वक्त आपकी बुद्धि किस जगह शक्कर खाने को चलीगई थी. अब योग्यता अयोग्यता का व यहांके शांत स्वभावी भले संघ का और गालियांका सरणा लेकर अपनी झठी इज्जत का बचाव करने के लिये भागे जा रहे हो, यही आपकी बहादुरी जग जाहिर होगी. 7 बार बार अपनी योग्यता के अभिमान की बात लिखते थोडा विचार करो. देवद्रव्यको भक्षण करके अनंत संसार बढानेवाली, भोले जीवों को भगवान की पूजा आरती के चढावे की भक्ति में अंतराय करनेवाली, देवद्रव्य के लाखों रुपयों की आवक को नाश करनेवाली, हजारों लोगों को संशय में गेरनेवाली, भविष्य में मंदिर, मूर्ति, तीर्थक्षेत्रों की वडी भारी आशातना करनेवाली, और अपने पद की साधुपने को मर्यादा छोडकर गालियों से शासन की हिलना करानेवाली व अपने दुराग्रहको अभिनिवेशिक मिथ्यात्व से पुष्ट करनेवाली, ऐसी आपकी योग्यता आपके पासही रवखा. जैन समाज में से किसीको भी ऐसी योग्यता का अंशमात्र भी मत हो, यही देव गुरु व शासन रक्षक देवों से मेरी प्रार्थना है. शास्त्रार्थ से फल क्या और हारनेवाले को दंड क्या ? 8 शांतिपूर्वक न्याय से शास्त्रार्थ होकर निर्णय हो जावे तो हजारों लोगों की शंका मिटे, समाज का क्लेश मिटे, देवद्रव्य की आवक रूकी है सो आवेगी, देवद्रव्य के भक्षण के पाप से समाज बचेगा, देवद्रव्यकी
SR No.004449
Book TitleDevdravya Nirnay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJinkrupachandrasuri Gyanbhandar
Publication Year1917
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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