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________________ 21 . झूठी झूठी अन्य बातें लिखकर क्लेश बढानेका हेतु करने लगे, इसलिये फजूल ऐसे झूठे पत्रव्यवहार को बंध करना पडा / यह बात तो प्रसिद्ध ही है कि आत्मार्थी महान्पुरुष होते हैं वो तो अपना झूठा आग्रह छोडकर तत्काल अपनी भूलका मिच्छामि दुक्कडं देते हैं, व भवभीरु होनेसे लोकलज्जा न रखते हुए सत्य बात ग्रहण करते हैं. और इस लोकके स्वार्थी, बाह्य आडंबरी व अभिनिवेशिक मिथ्यात्वी होते हैं, वो तो अपने झूठे आग्रह को कभी छोडते नहीं, उन्होंको अपनी भूलका मिच्छामि दुक्कडं देना बडा मुश्किल होता है. इसलिये मूलविषयकी बातको छोडकर विषयांतर से या व्यक्तिगत आक्षेपसे, क्रोध व निंदाके कार्यों में पडकर क्लेश बढाने लगते हैं, और अपनी झूठी बातको जमाने के लिये अनेक तरह की कुयुक्तियोंसे दृष्टिरागी भोले जीवोंको भ्रममें डालकर अपनी बात जमाने की कोशीस करते हैं. और विवादस्थ शंकावाली बातोंका पूरापूरा निर्णय न होनेसे भविष्यमें समाज को बडा भारी धक्का पहुंचता है. एक मतपक्ष जैसा होकर समाज में हमेश क्लेश होता रहता है.इस. विषयमें भी ऐसा न हो, इसलिये उसका निवारण करने के लिये ऐसी विवादस्थ शंकावाली बातोंका पूरापूरा निर्णय समाज के सामने रखना योग्य समझकर सर्वतरह की शंकाओंका समाधान पूर्वक अब आगे उसका निर्णय बतलाया जाता है. इसको पूरापूरा उपयोग पूर्वक अवश्य बांच, सत्यसार ग्रहण करें और अन्यभव्यजीवोंको सत्य बात समझाने की कोशीश करें, उससे तीर्थकर भगवान् की भक्तिका और देवव्यकी रक्षा होनेका बड़ा भारी लाभ होगा. विशेष क्या लिखें.
SR No.004449
Book TitleDevdravya Nirnay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJinkrupachandrasuri Gyanbhandar
Publication Year1917
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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