SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेरे साथ आपकी तरफ से कौन शास्त्रार्थ करेगा उसका नाम लिखें. सत्यग्रहण करने की सही भेजें. संवत् 1978 फागण सुदी 6. - मुनि-मणिसागर, मालवा बदनावर. यह रजीष्टर पहुंचा तब उसका जवाब आया वह यह है. श्रीयुत मणिसागरजी,-पोष्ट कार्ड मल्यु. शास्त्रार्थ माटे अहिं आववानी तमने कोईए मना न्होती करी, रतलाम थी अहिं सुधीनो रस्तो खुल्लो हतो अने अत्यारे पण रस्तो खुलो छ जेने शास्त्रार्थ करवोज होय ते तो आवी रीते निरर्थक पत्रों लखी व्यर्थ खर्च गृहस्थो पासे नज करावे. शास्त्रार्थ ने माटे जे कई नियमों प्रतिज्ञापत्र विगेरेंनी आवश्यकता छे, ते मध्यस्थ निमातां तमारे अमारे बन्नेए करवाना छ, ते करी लेवाशे, जो आवशो नहिं अने व्यर्थ पत्रों लख्या करशो तो लोकोने पेली कहेवत याद करवी पडशे के --' भसे ते नहिं कूतरो चरण काटे, लबाउ लहे उपमा एज साटे ' अटला माटे जलदी आवो अने शास्त्रार्थ करो. इन्दोर सीटी, फागण शुदी 10, 2448,, विद्याविजय. यह पत्र मेरेको बदनावर लिखाथा, मैं चैत्र बदी 2 को इन्दोर आया, और उसीरोज शास्त्रार्थके लिये उन्होंको पत्र भेजा, वह यह है. ___ श्रीमान् विजयधर्म सूरिजी ! योग्य वंदना पूर्वक निवेदन-आपने देवद्रव्य संबंधी अपने विचारों की 4 पत्रिकाओंमें अनेक जगह बहुत अनुचित बातें लिखी हैं, उससंबंधी शास्त्रार्थ के लिये मैं यहांपर आया हूं, वह आपको मालूमही है. इस शास्त्रार्थ में सत्य निर्णय ठहरे उसको अंगीकार करनेकी और जिसकी प्ररूपणा झूठी ठहरे उसको उसी समय सभामें संघ समक्ष अपनी भूलका मिच्छामि दुकडं देनेकी प्रतिज्ञा आप मंजूर करें. मेरेकोभी यह प्रतिज्ञा मंजूर है.
SR No.004449
Book TitleDevdravya Nirnay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJinkrupachandrasuri Gyanbhandar
Publication Year1917
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy