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________________ प्रकार करने से किसी भी समय पर देवद्रव्य की मूल रकम के नाश होने का प्रसंग ही उपस्थित नहीं होगा। देवद्रव्य की वृद्धि के लिए शास्त्रकारों ने कितना गंभीर विचार किया है ? यह सत्य भी है कि देबद्रव्य की वृद्धि मन्दिरों और मूर्तियों के लिए जिन साधनों की आवश्यकता होती है, उसके लिये ही की जाती है न कि रखने के लिये / द्रव्य साधन है न कि साध्य / गृहस्थों के लिये भी यही नियम लागू होता है। जो गहस्थ द्रव्य को साधन न मानकर साध्य मानते हैं, उनका द्रव्य भी निष्प्रयोजन ही है। जब गृहस्थों के लिये भी ऐसी स्थिति है तब फिर धार्मिक-द्रव्य के लिये विशेष ध्यान देना उपयुक्त ही है। यदि इस नियम का पालन किया जाता तो आज मेवाड़-मारवाड़ और ऐसे ही अनेक अन्य स्थानों में जिनमन्दिर जीर्ण हो रहे हैं, मन्दिरों में पेड़-पौधे घास वगैरह उग रही है। मूर्तियों पर मैल चढ़ रहा है अनेक तीर्थभूमियों में भयंकर आशातनाएँ हो रही है। यह सब देखने का हमें अवसर भी न मिलता। अरे ! एक मन्दिर का द्रव्य समीपवति अन्य मन्दिर के जीर्णोद्धार के लिए भी खर्च करने में संकोच किया जाता हो वहाँ यही देवद्रव्य साधन है या साध्य इसका विचार वाचकवृन्द स्वयं ही कर सकते हैं।
SR No.004448
Book TitleDevdravya Sambandhi Mere Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsuri
PublisherMumukshu
Publication Year
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size6 MB
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