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________________ ( 51 ) है ? यही कि वे आभूषण भगवान् को अर्पण नहीं किए गये हैं। इन्हीं कारणों को मैं अपनी द्वितीय पत्रिका में भी अनेक दृष्टान्तों, युक्तियों और शास्त्रीय प्रमाणों से बता चुका हूं कि___"जो द्रव्य देवद्रव्य के रूप में निर्णीत हो चुका हैएकत्रित हो चुका है / उसका तो मंदिरों और मूर्तियों के अतिरिक्त अन्य कार्यों में व्यय नहीं कर सकते हैं, परन्तु जो द्रव्य अभी तक देवद्रव्य में आया ही नहीं है और जिस द्रव्य के लिए किसी प्रकार का निश्चय ही नहीं किया है, उस द्रव्य को किस खाते में ले जाना चाहिए इसका यथोचित निर्णय, संघ करके उसी खाते में ले जाएं अब तक श्री संघ परिवर्तन करता ही आया है और ऐसा करने में किसी प्रकार का शास्त्रीय दोष भी नहीं है।" ___ इस पत्रिका में मैं जो कुछ कहना चाहता हूँ वह "देवद्रव्य की वृद्धि किस प्रकार से करना ?" इस संबंध में है। देवद्रव्य को वृद्धि के उपायों को जानने से पूर्व 'देवद्रव्य की आवश्यकता' समझना जरूरी है, परन्तु उस संबंध में मैंने अपनी प्रथम पत्रिका में ही स्पष्टीकरण कर दिया था कि- "मूर्ति के साथ में देवद्रव्य का अतिघनिष्ठ संबंध रहता आया है। जो मूर्ति को स्वी
SR No.004448
Book TitleDevdravya Sambandhi Mere Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsuri
PublisherMumukshu
Publication Year
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size6 MB
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