SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 40 ). अर्थात्-देवद्रव्य की तरह साधारण द्रव्य में भी वृद्धि [करनी चाहिए क्योंकि देवद्रव्य और साधारणद्रव्य में वृद्धि की दृष्टि शास्त्र में तुल्यत्वश्रु ति है अर्थात् दोनों की वृद्धि में समान दृष्टि रखनी चाहिए, ऐसा बताया गया है और आगे उसी ग्रन्य में ग्रन्थकार कहते हैं"देवस्सं नाणदव्वं च साधारणधणं,तहा / सावएहिं तिहा काउ नेयव्वं वुढिमायरा // 1 // ' अर्थात् - देवद्रव्य, ज्ञानद्रव्य और साधारण द्रव्य, इन तीनों की ही श्रावकों को आदर- पूर्वक वृद्धि करनी चाहिए। ___इस से स्पष्टता हो जाती है कि साधारण द्रव्य की भी देवद्रव्य की तरह ही वृद्धि करनी चाहिए। पुनः कहते हैं - . "चेइयदव्वं साहारणं च जो दुहइ मोहियमईओ। धम्म च सो न याणइ अहवा बद्धाउओ नरए // 1 // " अर्थात् चैत्यद्रव्य (देवद्रव्य)और साधारणद्रव्य- इन दोनों का मोहितमति वाला व्यक्ति ही नाश करता है (अथवा भोग करता है) वह धर्म को नहीं जानता है अथवा वह नरकायुष्य का बंध करता है। कितना सुदंर पाठ है ! देवद्रव्य की तरह साधारण द्रव्य की उपेक्षा करने वाले - भक्षण करने वाले, नष्ट करने वाले को क्या कम दण्ड बताया गया है ? साधा
SR No.004448
Book TitleDevdravya Sambandhi Mere Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsuri
PublisherMumukshu
Publication Year
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy