________________ / 26 ) और भी देखिएँ " पहले के समय में गुरुन्यञ्छणे के द्रव्य को याचक लोग ले जाते थे। (अभी भी कई स्थानों पर याचक लोग ले जाते हैं।) परन्तु बाद में वह द्रव्य साधारण खाते में ले जाया जाता होगा क्योंकि 'श्राद्धविधि' के निम्न पाठ से स्पष्ट हो जाता है। 'श्राद्धविधि' के पृष्ठ 77 में इस प्रकार का पाठ है। "साम्प्रतिकव्यवहारेण तु यद् गुरुन्युञ्छनादीना साधारणं कृतं स्यात्तस्य श्रावक-श्राविकाणामपणे युक्तिरेव न दृश्यते / शालादिकार्ये तु तद् व्यापार्यते श्राद्धः।" _. अर्थात्- साम्प्रतिक व्यवहार द्वारा तो जो गुरुन्युऊछनादि के द्रव्य को साधारण खाते में ले जाया गया हो, उस द्रव्य को श्रावक - श्राविका को देना युक्तियुक्त नहीं है। शालादि के कार्य में श्रावक उस द्रव्य का उपयोग कर सकते हैं। इस से स्पष्ट प्रतीत होता है कि गरुन्यञ्छनादि के द्रव्य को साधारण खाते में भी ले जाने का रिवाज था तब आप ही कहें कि गरुन्यञ्छनादि के द्रव्य में भी परिवर्तन हुआ या नहीं ? इस प्रकार गुरुन्युञ्छनादि के द्रव्य को साधारण खाते में ले जाने का कारण यही ज्ञात होता है