________________ ( 22 ) वास्तविक स्थिति जब ऐसी है तब बोलियों के रीतिरिवाजों की तरफ क्यों देखा जाता है ? यह एक स्वाभाविक प्रश्न उठता है। इसका उत्तर मैंने अपने प्रथम लेख में समुचित रूप से दे दिया है। भगवद्भक्ति के प्रसंग पर बलवान् निर्बल पर, धनी निर्धन पर और विद्वान् मूर्ख पर आक्रमण न करे तथा सुख समाधि पूर्वक प्रत्येक घ्यक्ति समभावपूर्वक भक्ति कर सके यही बोली बोलने का मुख्य कारण है। कई बार देखा भी जाता है कि मंदिरों एवं तीर्थ स्थानों में पूजा के समय में पूजा करने वालों में रगड़े-झगड़े होते हैं और जो स्थान कर्मक्षयार्थ पवित्र माना जाता है उसी स्थान पर वे लोग कषायों से व्याप्त होकर अपनी आत्मा को मलिन करते हैं। बोली का रिवाज होने पर भी “एकदम ( अचानक ) आदेश क्यों दे दिया ?" इत्यादि कारणों को खड़े कर क्लेशयुक्त वातावरण बना देते हैं तो फिर बोली बोलने का रिवाज नहीं रहेगा, तब तो न मालुम ऐसे भक्ति के रहस्य को नहीं समझने वाले लोग कितना तूफान करेंगे? यह क्या सम्भव नहीं है ? बस, इन्हीं कारणों को लेकर बोलियों के रीतिरिवाज कुछ ही वर्षों से चले हैं। वस्तुतः 'पूजा-आरती आदि की बोलियाँ होनी ही चाहिए, ऐसी कोई प्रभु की आज्ञा नहीं है न उपदेश है' यह बात परम प्रभावक,