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________________ सहमत हो तो होती ही रहा है। "बोली बोलने का विधान श्राद्धविधि में है क्या ?" श्रीमान् आनंद सागर जी द्वारा दिये गये प्रमाण की निर्बलता- .. (लेखक-प्रवर्तक श्री मंगल विजय जी) संसार में विचारभेद का साम्राज्य आज का ही नहीं है अपितु अनादि काल से चला आ रहा है। प्रत्येक व्यक्ति की ऐसी इच्छा तो होती ही है कि मेरे विचारों से सभी सहमत हो और यह इच्छा अस्वाभाविक भी नहीं है। अतएव कोई भी व्यक्ति अपने विचारों के प्रचार हेतु-अपने विचारों की तरफ लोगों को मोड़ने का प्रयत्न करता है तो स्वाभाविक है, परन्तु इतना अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि हृदय की समतोलवृत्ति में आँच नहीं आनी चाहिये / ' _अभी-अभी 2-2 // महिनों से देवद्रव्य की चर्चा ने मुनिमण्डल में स्थान लिया है। 'देवद्रव्य' वस्तु शास्त्रसिद्ध है, इसमें तो किसी प्रकार का मतभेद नहीं है, परन्तु देव द्रव्य के स्वरूप निर्णय में विचारभेद पाया जाता है। विचारभेद के प्रकटकर्ता शास्त्रविशारद जैनाचार्य श्री धर्मसूरि महाराज है। इन्होंने ही सर्वप्रथम
SR No.004448
Book TitleDevdravya Sambandhi Mere Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsuri
PublisherMumukshu
Publication Year
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size6 MB
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