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________________ यात्रा के विवरण स्वरूप "विज्ञप्ति त्रिवेणी" संज्ञक महत्त्वपूर्ण विज्ञप्ति पत्र आपको भेजा था। इन्होंने सं० 1509 कार्तिक सुदि 13 को जैसलमेर के चन्द्रप्रभ जिनालय में प्रतिष्ठा की। श्रुतरक्षक आचार्यों में श्री जिनभद्रसूरि जी का नाम मूर्धन्य स्थान में है। खरतरगच्छ के दादा संज्ञक चारों गुरुदेवों की भाँति आपके चरण व मूर्तियाँ अनेक स्थानों में पूज्यमान हैं। श्री जिनभद्रसूरि शाखा में अनेक विद्वान् हुए हैं। खरतरगच्छ की वर्तमान में उभय भट्टारकीय, आचार्यांय, भावहर्षीय व जिनरंगसूरि आदि शाखाओं के आप ही पूर्व पुरुष हैं। ___आपने कीर्तिराज उपाध्याय को आचार्य पद देकर श्री कीर्तिरत्नसूरि नाम से प्रसिद्ध किया था। ये नेमिनाथ महाकाव्यादि के रचयिता और बड़े प्रभावक आचार्य हुए हैं। इनके गुणरत्नसूरि, कल्याणचन्द्रादि 51 शिष्य थे। इनके भ्राताओं व उनके वंशजों ने जैसलमेर, जोधपुर, नाकोड़ा, बीकानेर आदि अनेक स्थानों में जिनालय निर्माण कराये व अनेक संघ-यात्रादि शासन प्रभावना के कार्य किये थे। श्री कीर्तिरत्नसूरि शाखा में पचासों विद्वान् कवि आदि हुए हैं। गीतार्थ शिरोमणि श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि भी श्री कीर्तिरत्नसूरि जी की परम्परा में ही हुए हैं। ____ श्री जयसागर जी को जो श्री जिनवर्द्धनसूरि जी के शिष्य थे, आपने ही सं० 1475 में उपाध्याय पद से अलंकृत किया। ये बड़े विद्वान् और प्रभावक हुए हैं। आबू की "खरतर वसही" दरड़ा गोत्रीय सं० मंडलिक जो उपाध्यायजी के भ्राता थे, ने ही निर्माण करवाई थी। उपाध्याय जी की परम्परा में भी अनेकों विद्वान् हुए। उपाध्याय जी के निर्माण किए अनेक ग्रंथ व स्तोत्रादि उपलब्ध .. इस स्तोत्र में पद-परिमाण का निर्वचन नहीं किया गया है। निर्वचन के बिना स्पष्टीकरण नहीं होता है कि यहाँ पद का अर्थ क्या है, क्योंकि जो पद प्रमाण दिया गया है वह वर्तमान के आगम अंग से मेल नहीं खाता। इसीलिए श्रुति परम्परा को ही आधार मानकर चलना उपयुक्त है। प्रारम्भ में 11 अंगों का पद-परिमाण दिया गया है, वह निम्न है: आचारांग सूत्र, पद परिमाण 18,000 सूत्रकृतांग सूत्र, पद परिमाण 36,000 स्थानांग सूत्र, पद परिमाण 72,000 समवायांग सूत्र, पद परिमाण 1,44,000 भगवती सूत्र, पद परिमाण 2,88,000 ज्ञाताधर्म कथांग सूत्र, पद परिमाण 5,76,000 उपासक दशांग सूत्र, पद परिमाण 11,52,000 अन्तकृद् दशांग सूत्र, पद परिमाण 23,04,000 अनुत्तरोपपातिक दशांग सूत्र, पद परिमाण 46,08,000 प्रश्नव्याकरणांग सूत्र, पद परिमाण 92,16,000 विपाकांग सूत्र, पद परिमाण 1,84,32000 इसके पश्चात् दृष्टिवाद पाँच भेद वर्णित किये गये हैं- परिकर्म, सूत्र, पूर्वागत, अनुयोग और . चूलिका। चौदह पूर्वो की पद परिमाण संख्या इस प्रकार कही गई है। 354 लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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