________________ गुरुमुख से महाराजा सम्प्रति, कुमारपाल भूपाल और महामन्त्री वस्तुपाल के उदार, श्रेयस्कर और . सुकृतमय चरित्रों को सुनकर और पुनः-पुनः स्मरण कर अपने हृदय वन को सुकृतमय जल से सिंचन करता था। न्यायोपार्जित वित्त के द्वारा पेथड़ ने जिन-जिन श्रेष्ठ स्थानों, पर्वतों, नगरों और ग्रामों में नयनाह्लादक जिनमंदिरों का निर्माण करवाया उन-उन स्थानों का कल्याणकारी मूलनायक जिनेश्वरों के नाम के साथ मैं श्रद्धापूर्वक स्तवना करता हूँ। छठे पद्य के दो चरणों में कहा गया है कि पेथड़ ने वि० सं० 1320 में मण्डपगिरि (माण्डवगढ़) में शत्रुजय तीर्थ के समान ही विशल और प्रोत्तुंग आदिनाथ भगवान् का मन्दिर बनाया। छठे पद्य के तीसरे चरण से पद्याङ्क 15 तक में स्तवनकार पेथड़ निर्मापित चैत्यस्थलों के नाम निर्देश के साथ मूलनायक जिनेश्वर देवों के भी नामोल्लेख करता है। अन्तिम सोलहवें श्लोक में स्तोत्रकार कहता है कि, पृथ्वीधर ने पर्वत-स्थलों, नगरों और ग्रामों में हिमशिखर की स्पर्धा करते हुए उत्तुंग शिखर वाले जिन मन्दिरों का निर्माण कर, जिन बिम्बों की प्रतिष्ठा . करवाई। वे तथा और अन्य देवों एवं मनुष्यों द्वारा निर्मापित जो भी जिनचैत्य और प्रतिमाएँ हैं उन सबको मैं नमस्कार करता हूँ। इस स्तोत्र में उल्लिखित स्थल-नाम और मूलनायक के नामों की सूची के साथ ही सुकृतसागर में प्रतिपादित स्थल नामों की सूची का तुलनात्मक विवरण इस प्रकार है:मन्दिर सं० मूलनायक नाम स्तोत्र में स्थल नाम सुकृतसागर में स्थल नाम आदिनाथ मण्डपगिरि (माण्डवगढ़) . माण्डवगढ़ नेमिनाथ निम्बस्थूर पर्वत निंबस्थूर पर्वत पार्श्वनाथ निम्बस्थूर पर्वत की तलहटी निम्बस्थूर पर्वत की तलहटी पार्श्वनाथ उज्जयिनीपुर उज्जयिनीपुर नेमिनाथ विक्रमपुर विक्रमपुर / पार्श्वनाथ मुकुटिकापुरी मकुडी आदिनाथ मुकुटिकापुरी मकुडी मल्लिनाथ विन्धनपुर पार्श्वनाथ आशापुर आदिनाथ शान्तिनाथ अर्यापुर ज्यापुर धारानगरी धारा नेमिनाथ वर्धनपुर आदिनाथ चन्द्रकपुरी चन्द्रावती पार्श्वनाथ जीरापुर पार्श्वनाथ जलपद्र लेख संग्रह - - 3 ; घोषकीपुर नेमिनाथ &