SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रचनाकार अज्ञात हैं / मरणसमाधि का उल्लेख किया गया है / ये तीनों आतुरप्रत्याख्यान (मूल) नन्दी एवं पाक्षिकसूत्र में प्राप्त होता है / इसमें पइण्णयसुत्ताई में सङ्कलित हैं / वीरभद्रकृत मरण के अतिरिक्त आचार्य के 36 गुणों, आतुरप्रत्याख्यान के प्रकाशित संस्करण बाबू आलोचना के दोषों आदि का नाम सहित वर्णन धनपतसिंह मुर्शिदाबाद, बालाभाई ककलभाई किया गया है / इसका प्राकृत संस्करण बाबू अहमदाबाद, आगमोदय समिति, हर्ष पुष्पामृत जैन धनपतसिंह मुर्शिदाबाद (ई० सन् 1886), ग्रन्थमाला, जैनधर्म प्रसारक सभा-मुल्तान, ऋषि बालाभाई ककलभाई, अहमदाबाद (ई० सन् स्मारक समिति, धूलिया से मूल एवं 190 तत्त्वविवेचनसभा (1901) से गुजराती, मनमोहन आगमोदय समिति (ई० सन् 1926, छायासहित); यशमाला, पायधुनी, मुम्बई (1950) से हिन्दी एवं हर्ष पुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला. (ई० सन् 1975) मनमोहन यशस्मारक (1934) से गुजराती और और महावीर जैन विद्यालय, बम्बई (ई० सन् हिन्दी अनुवाद के साथ हैं / 1984) से प्रकाशित हो चुका है / अभी ५-महाप्रत्याख्यान-इस प्रकीर्णक का उल्लेख तक इसका कोई हिन्दी अनुवाद प्रकाशित नहीं .. नन्दीसूत्र तथा पाक्षिकसूत्र में उपलब्ध होता है / नन्दिसूत्रचूर्णि, हरिभद्रीय वृत्ति तथा पाक्षिकसूत्र हुआ है। वृत्ति में इस प्रकीर्णक का परिचय देते हुए कहा 2-4 आतुरप्रत्याख्यान - इस नाम से दो और गया है “महाप्रत्याख्यानम् महच्च तत् प्रत्याख्यानं प्रकीर्णक हैं / प्रस्तुत आतुरप्रत्याख्यान गद्य-पद्य चेति समासः / थेरकप्पेण जिनकप्पेण वा विहरेत्ता मिश्रित है / इसमें सूत्रों और गाथाओं की कुल अंते थेरकप्पिया बारस वासे संलेहं करेत्ता, संख्या 30 है / इसमें शरीर के ममत्व त्याग, सागार जिणकप्पिया पुण विहारेणेव संलीढा तहावि और निरागार प्रत्याख्यान तथा सभी जीवों के प्रति जहाजुत्तं संलेहं करेत्ता निव्वाघातं सचेट्ठा चेव क्षमापना की गयी है / इसके लेखक अज्ञात हैं / भवचरिमं पच्चक्खंति, एवं सवित्थरं जत्थऽज्झयणे दूसरे आतुरप्रत्याख्यान में कुल 34 गाथाएँ हैं / वण्णिजइ तमज्झयणं महापच्चक्खाणं / " अर्थात् इसके कर्ता भी अज्ञात हैं / इसमें उपोद्घात, महाप्रत्याख्यान शब्द महान् और प्रत्याख्यान से अविरति प्रत्याख्यान, मिथ्यादुष्कृत, ममत्वत्याग, बना है / स्थविरकल्पी और जिणकल्पी में शरीर के लिए उपालम्भ, शुभभावना, अरहंतादि स्थविरकल्पी विहार के अन्त में बारह वर्ष की स्मरण, पापस्थानक त्याग आदि शीर्षक से विषय संल्लेखना करते हैं, जिनकल्पी विहार के क्रम में वर्णित हैं / तीसरे आतुरप्रत्याख्यान के कर्ता जब जैसी आवश्यकता हो संल्लेखना ग्रहण कर वीरभद्र हैं / इसमें कुल 71 गाथाएँ हैं / इसमें मरण लेते हैं और अन्त समय तक के लिए प्रत्याख्यान के बालमरण, बालपण्डित मरण और कर लेते हैं / इसका विस्तारपूर्वक वर्णन जिस पण्डितमरण- तीन भेद कर विषय का प्रतिपादन अध्ययन में हो वह महाप्रत्याख्यान है / 7. नन्दिसूत्र चूर्णि पृ० 58, नन्दिसूत्रवृत्ति पृ० 72, पाक्षिकसूत्रवृत्ति 95 प्रकीर्णक साहित्य : एक अवलोकन 34
SR No.004445
Book TitleAgam Chatusharan Prakirnakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_chatusharan
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy