________________ परिशिष्ट-१ विणसे नहीं तिम जेहनई सूत्र अर्थ भण्या हुइ ते वीसरे नहीं ते कोष्ठ बुद्धि कहिइ / श्री। - जंघाचारण लब्धिना धणी जंघानै बलई एकई उतपतवइ सत्तर सहस जोअण उचा उत्पतीनइ त्रींछा रूचकइनइ नामइ तेरमई द्वीपें जाइं तिहां चैत्य वांदई तिहांथी आवतां आठमें नदीश्वरद्वीपें वीसामो लीइं / तिहांनां चैत्य वांदई तिहांथी इहां आवइं / इहांनां चैत्य वादे / उची गति एकइ उत्पतवे छे मेरूनें मथालइं पंडकवनइं जाइ / तिहांनां चैत्य वांदई / तिहांथी वलतां नंदनवने वीसामो लइ तिहा चैत्यवांदइ तिहांथी इहां आवै / इहांनां चैत्य वांदै / विद्याचारण लब्धि ना धणी सत्तर सहस जोअण उचा उत्पत्ती एकई उत्पतवइ इहांथी मानुषोत्तर पर्वतई जाइं / तिहां चैत्य वांदई / तिहाथी नंदीश्वरद्वीपें जाइं / तिहांनां चैत्य वांदै / / तिहांथी एकई उत्पतवे इहां आवै / इहांनां चैत्य वांदइ उची गते इहांथी नंदनवनइं जाइ तिहां वीसामो लीइ / तिहाथी पंडकवनइं जाइं / तिहां चैत्य वांदीइं / तिहांथी एकें उत्पतवें इहां आवै इहांना चैत्य वांदई / जंधाचारणनी अनुक्रमें शक्ति घटै ते माटइ जातां - वीसामो न ले आवतां घीसामो ल्ये / अनइं विद्याचरणनी शक्ति अनुक्रमें वाधे ते माटे जातां वीसामो ले आवतां वीसामों न लें / उज्झियवइर-विरोहा निश्चमदोहा पसंतमुहसोहा / अभिमयगुणसंदोहा हयमोहा साहुणो सरणं / / 35 / / टि. वैरं प्रभूतकालजम्, तत्कालजो विरोधोऽप्रीतिविशेषः, यत एव उज्झितः वैरहेतवो विरोधो वा / अत एवाद्रोहाः / अत एव प्रशान्तः, द्रोहिणां करालं मु० / मोहोऽज्ञानम् / / 35 / / अव. उज्झित-निराकृतवैरविरोधाः / नित्यं निरन्तरमद्रोहा द्रोहरहिताः / प्रशान्त उपशान्त मुहसोहा मुखशोभाः / अभिगता ज्ञाता गुणसन्दोहाः समूहाः / हत विनाशितमोहाः यैः / एवंविधाः / / 35 / / बाला. उजित कहेतां छांड्यां 3 वईर विरोध जेणि, सदाइ द्रोहि रहित ते माटइ जे उपशमवंत मुखनी शोभा छे जेहनी, पाम्या छे गुण कहेता गुणनो समूह जेणिं, हण्यो छे मोह जेणइं एहवा श्री साधु शरण होजो / / 35 / / खंडियसिणेहदामा अकामधामा निकामसुहकामा / सपुरिसमणाभिरामा आयारामा मुणी सरणं / / 36 / / टि. स्मरसग्रत्यक्ताः विषयासक्तिहेतुस्मरमन्दिररहिता वा / अथवा न कामधाम ___ कामस्थानम् / निष्कामे निर्विषये सुखे / सत्पुरुषाणामाचार्यादीनां वन्दारूणां मनांसि सपरिवार