SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अवश्य करना चाहिए। प्रहर, तत्पश्चात् फाल्गुन चातुर्मास . 5. मंजन आदि करके नवकारसी तक चार प्रहर एवं आषाढ मास तक आदि प्रत्याख्यान नहीं किये जा पाँच प्रहर का कहा गया है। सकते हैं। प्र.163. महाराजश्री! खरतरगच्छ और 6. एकासन आदि करते समय पट्ट तपागच्छ की परम्परा में दुविहार स्थिर होना चाहिये / झूठे मुँह नहीं और तिविहार का भेद क्यों दिखायी बोलना चाहिए एवं उठते समय देता है? तिविहार का प्रत्याख्यान करना उ. शास्त्रीय कथन है- 'जत्थ जलं चाहिये। बियासने में दूसरा भोजन तत्थ वणं।' जहाँ जल है, वहाँ करने के बाद तिविहार का वनस्पति है। इसके आधार पर प्रत्याख्यान करना चाहिये। खरतरगच्छ में दुविहार का प्र.162. उपवास आदि में सचित्त जल को प्रत्याख्यान करके दो आहार अशन गर्म करके.अचित्त किया जाता है, और खादिम का त्याग किया जाता है इससे असंख्य जीवों की विराधना और जल एवं उसके अन्तर्गत होती है / प्रत्याख्यान में भला ऐसी वनस्पति की छूट रखी जाती है। जीव–हिंसा का क्या औचित्य है? प्र.164. महाराजश्री! खरतरगच्छ में श्रावकों को पाणस्स के छह उ. सम्भवतः आपको पता नहीं होगा कि आगार 'पाणस्स लेवेणवा अलेवेण पानी में प्रतिपल असंख्य जीव उत्पन्न वा......' बोलने का निषेध किया होते हैं एवं मृत्यु को प्राप्त होते हैं। गया है, जबकि अन्य परम्पराओं में जन्म मरण की इस अन्तहीन परम्परा ये आगार बोले जाते हैं, इस भेद को रोकने के लिये पानी गर्म किया का कारण शास्त्रीय है या जाता है। यद्यपि एक बार जीव हिंसा पारम्परिक? का दोष तो लगता है तथापि कुछ खरतरगच्छ की यह परम्परा घण्टों के लिये वह पानी अचित्त हो शास्त्रोक्त प्रमाणित है। इसके तीन जाता है जिससे जीवों के जन्म-मरण आधार हैकी हिंसा के महा-दोष से भी बचा 1. शास्त्रों में निषेध - श्री वृहद्जाता है। भाष्य में कहा है-'ए ए छ आगारा उष्ण जल का काल चातुर्मास में तीन
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy