________________ 3. प्रमाद-आत्मकल्याण के लिये उ. नहीं, ऐसा नहीं है। खरतरगच्छ की उचित अवसर एवं समय का उपयोग परम्परा में सुबह प्रतिक्रमण के 'नहीं किया हो। लगभग अन्त में तथा शाम प्रतिक्रमण 4. कषाय-क्रोध-मान-माया- लोभ के प्रारंभ में चार चार स्तुतियों के द्वारा किया हो। एवं दोपहर को एक बार, इस प्रकार 5. योग- मन, वचन और काया की शास्त्रानुसार तीन बार देववंदन किया अशुभ प्रवृत्ति की हो। जाता है। प्र.113. छह आवश्यकों में से देव, गुरू व प्र.116.खरतरगच्छ में सामायिक विधि में धर्म के कितने आवश्यक हैं?. करेमि भंते सूत्र पहले, उ. 1.देव-(एक) चतुर्विंशतिस्तव आव- इरियावहियं बाद में की जाती है श्यक एवं प्रतिक्रमण में अड्ढाइज्जेसु 2. गुरू - (एक) वंदनक आवश्यक। नहीं कहा जाता है तथा सज्झाय 3. धर्म - शेष चार आवश्यक / भी नहीं करते हैं, इनके भी कारण प्र.114. महाराजश्री! प्रतिक्रमण एवं बताने की कृपा कीजिये। सामायिक में चरवले के अभाव में उ. 1. आगमों में सामायिक में पहले खड़े होने का निषेध किया जाता करेमि भंते सूत्र तत्पश्चात् है, इसका क्या कारण है? . इरियावही करने की आज्ञा है। उ. प्रमार्जन प्रतिक्रमण का एक महत्त्वपूर्ण 2. श्री जिनवल्लभसूरि, दादा श्री अंग है। चरवले के अभाव में व्यक्ति जिनदत्तसूरि, श्री जिनपतिसूरि, पृष्ठ भाग की, अग्र भाग की, घुटने समयसुंदरजी आदि द्वारा रचित आदि संधि द्वारों की प्रमार्जना नहीं समाचारी प्रकरणों में अड्ढाइ• 'कर पाएगा। अतः चरवले के अभाव ज्जेसु बोलने का निषेध किया गया में खड़े होने का निषेध किया जाता है। है। यह भेद केवल समाचारी का प्र.115. महाराजश्री! शास्त्रों में उपधान, है। उपवास आदि तपश्चर्या के दौरान 3. खरतरगच्छीय समाचारी प्रकरणों तीन बार देववंदन का कथन में श्रावकों के लिये सज्झाय बोलने किया गया है जबकि खरतरगच्छ का निषेध कहने के पीछे तर्क यह में एक बार ही देववंदन करने की है कि पूर्वकाल में प्रतिक्रमण के परम्परा दिखायी देती है, तो क्या बाद साधु एकत्र होकर आगमों का इसमें शास्त्राज्ञा का उल्लंघन स्वाध्याय करते थे, अतः साधु ही नहीं है? प्रतिक्रमण में सज्झाय बोलते हैं। ** ************ 39