________________ मुनि जीवन की पहचान प्र.63.मुनि जीवन की संक्षिप्त व्याख्या प्र.64.साधु के लिये श्रमण, माहण, क्या है? ___ अणगार आदि अनेक शब्द सुनते उ. जो पंच महाव्रतों एवं विविध उत्तर व्रतों हैं, इनका अर्थ वैशिष्ट्य समझाईए। की आराधना करते हैं, वे मुनि कहलाते उ. (1)साधु-पंच महाव्रतों की साधना हैं। करने वाला। पंच महाव्रत-(1) अहिंसा- किसी भी (2)श्रमण- स्वावलम्बी / छोटे-बड़े, सूक्ष्म-बादर, त्रस-स्थावर __ (3)अणगार-निजी घर का अभाव / जीव की विराधना का तीन योग (4)माहण-किसी भी जीव का हनन न (मन-वचन-काया) से एवं तीन करण करने वाला। (करना-करवाना-अनुमोदना करना) (5)मुनि- मौन को धारण करने वाला। से त्याग करते हैं। (6) भिक्षु - निर्दोष भिक्षा से जीवन (2) सत्य- हास्य, भय, क्रोध, मान, निर्वाह करने वाला। माया, लोभ युक्त असत्य का तीन योग (7) निर्ग्रन्थ- जिसमें राग-द्वेष की ग्रन्थि एवं तीन करण से त्याग करते हैं। . न हो। (3-5)अचौर्य-ब्रह्मचर्य-अपरिग्रहजो तीन करण एवं तीन योग से चोरी. प्र.65.जैन साधु स्नान क्यों नहीं करते हैं? अब्रह्मचर्य एवं परिग्रह का त्याग करते - उ. सोलह शृंगारों में स्नान पहला शृंगार 7. है। स्नान करने से राग भाव बढ़ता है। उत्तर गुण (1) रात्रि भोजन का त्यागकरना। अन्यों के मन में विकार जगाने में प्रबल (2) बयालीस दोषों से रहित कल्पनीय निमित्त होने से साधु स्नान का त्याग एवं प्रासुक आहार लेना / करते हैं। (3)ब्रह्मचर्य की नववाडों का पालन प्र.66. जैन साधु के कौन-कौनसे उपकरण करना / होते हैं? (4)शरीर की शोभा-विभूषा का त्याग उ. 1. रजोहरण (ओघा)- किसी भी करना। स्थान पर बैठने से पहले साधु ओघे से (5)लोच, पद-विहार आदि कष्ट सहन स्थान की प्रमार्जना करते हैं / करना। ___2. मुँहपत्ति- बोलते समय मुँहपत्ति