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________________ विधान एवं सम्पूर्ण श्रद्धा से जाप करने अरिहंताणं' से पहले स्थान क्यों वाला तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन नहीं दिया गया? करता है। उ. 1. प्रत्येक अरिहंत संपूर्ण कर्मों का क्षय प्र. 7. नवकार मंत्र का कितनी बार जाप करके अवश्यमेव सिद्ध होते हैं, अतः करने से जीव तीन भवों में वे अरिहंत तथा सिद्ध, दो पदों को मोक्षगामी होता है? धारण करते हैं जबकि हर सिद्ध पूर्व उ. 8 करोड़ 8 लाख 8 हजार 8 सौ 8 बार में अरिहंत नहीं होने से एक पद ही नवकार का जाप करने वाला तीन भवों धारण करते हैं। में मोक्षगामी होता है। 2. अरिहंत भव्य जीवों का उद्धार करने प्र. 8. नवकार मंत्र कितने पूर्वो का सार के लिये सम्यक मार्ग दिखाते हैं अतः कहा गया है? गुरू पदधारी होने से अरिहंत को उ. चतुर्दश पूर्वधर भी अन्त समय में / सिद्ध से पूर्व में स्थान दिया गया। नवकार मंत्र का जाप करते हैं, अतः इसे 3. अद्यावधि पर्यन्त जितने भी सिद्ध हुए चौदह पूर्यों का सार कहा गया है। हैं, वे अरिहन्त की देशना श्रवण प्र. 9. नवकार मंत्र का संक्षिप्त रूप क्या करके ही हुए हैं। प्र.12.नवकार की माला में 108 मणके उ. असिआउसा। क्यों होते हैं? प्र.10. नवकार मंत्र में शरीरी-अशरीरी एवं उ. 1. अरिहंत आदि पंच परमेष्ठी के आहारी-अनाहारी के कितने भेद क्रमशः 12,8,36,25 एवं 27 गुण होते हैं? होते हैं, इन गुणों का कुल योग 108 उ. नवकार मंत्र में सिद्ध पद अशरीरी एवं - होने से नवकार की माला में 108 अनाहारी है, शेष चार पद सशरीरी तथा मणके होते हैं। आहारी हैं। 2. 108 प्रकार से होने वाले पाप कर्मों प्र.11.सिद्ध परमात्मा के आठों कर्मों का का क्षय करने लिये नवकार की क्षय हो चुका है और अरिहंत माला में 108 मणके होते हैं। परमात्मा के चार कर्मों का, तो फिर प्र.13.108 प्रकार से पाप कर्म का बंध 'नमो सिद्धाणं' को 'नमो किस प्रकार होता है? है?
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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