________________ प्र.672.सिद्धासन किस प्रकार साधा लाभ-इस आसन से नाडियों का जाता है? शुद्धिकरण, नियमित पाचन क्रिया, उ. अलौकिक शक्तियों/सिद्धियों को एकाग्र मन, प्राणों का उर्ध्वारोहण, वीर्य प्रदान करने में समर्थ होने इस रक्षण एवं ब्रह्मचर्य पालन में यह आसन को सिद्धासन कहते है। आसन विशेषोपयोगी है। इस आसन जिस प्रकार व्रतों में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ से स्वप्न दोष का निवारण हो जाता है, उसी प्रकार आसनों में सिद्धासन है। दिव्यशक्ति, मेधा विकास, श्रेष्ठ है। इसे सिद्धिप्रिय योगियों मानसिक एकाग्रता आदि जो गुण का आसन कहा गया है। पद्मासन से प्राप्त होते हैं, वे इस विधि- बायें पांव की एडी को योनि आसन से भी मिलते हैं। के मध्य जिसे सीवन स्थान कहा विद्यार्थी लिये यह उतम आसन है। जाता है, वहाँ लगायें। गुदा और इस आसन में बैठकर जो भी पढा जननेन्द्रिय के मध्य का भाग योनि जाये, वह शीघ्र ही कंठस्थ होता हुआ कहलाता है। उस स्थान को एडी से दीर्घावधि पर्यन्त स्मृति में बना रहता दबाकर रखें। तथा दाहिने पांव की एडी को है। इस आसन को सामान्य व्यक्ति न ___ जननेन्द्रिय की करें अन्यथा विपरीत परिणाम हो जड में लगावे और .. सकते हैं। नेत्रों को अचल प्र.673. स्वास्तिकासन किसे कहते हैं? दृष्टि से आज्ञा चक्र उ. स्वस्ति अर्थात् मंगल और शुभ करने में स्थापित करें। वाला। इसे मूलासन भी कहा जाता __श्वासोच्छवास है। समस्त आसनों में सुगम स्वाभाविक, आँखें स्वस्तिकासन कल्याणकारी और खुली हो चाहे बन्द, हाथ नाभि के शान्तिप्रदायक है। सम्मुख उपर-नीचे, चित्त शान्त! विधि- दोनों ओर के जानु (घुटने) परम मौन और निर्विचार! और जंघा के मध्य दोनों पांवों के कोलाहल रहित प्रशान्त वायुमण्डल! तलवों को रखकर स्थिर होने वाला स्वच्छ स्थान! उत्तम दिशा! ढीले आसन स्वस्तिकासन है। शेष बातें वस्त्र। पूर्ववत् जान लेनी. चाहिये। ध्यान **************** 308 ****************