________________ 4. ज्यादा वजन को कम करने में सहायता मिलती है। 6. इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से पाचन शक्ति का विकास होता है। नोट : ज्यादा दुर्बल शरीर वाले इस मुद्रा का प्रयोग न करें। प्र.663.प्राण मुद्रा का प्रयोग किस प्रकार करें? उ. विधि -1. अंगूठे के अग्रभाग पर कनिष्ठिका के अग्रभाग को मिलाकर, कनिष्ठिका के नाखून पर अनामिका का अग्रभाग रखकर, शेष तर्जनी और मध्यमा सीधी रखकर प्राणमुद्रा बनती है। 2. यही मुद्रा करने का दूसरा तरीका : अनामिका और कनिष्ठिका के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाकर अंगूठे से हल्का सा दबाव देते हुए शेष अंगुलियाँ (तर्जनी और मध्यमा) सीधी रखते हुए प्राणमुद्रा बनती है। प्राणवायु मुख्यतया नासिका में, मुख में, हृदय में और नाभि के मध्यभाग में होती है। लाभ: 1. प्राणमुद्रा से प्राणशक्ति का विकास होता है। मेरुदंड सीधा रखते हुए प्राणमुद्रा करने से प्राण ऊर्जा सक्रिय बनकर उर्ध्वमुखी बनती है, जिससे चैतन्य शक्त्यिाँ उर्ध्वगामी होती है। 2. प्राणमुद्रा शरीर में स्फूर्ति, आशा, उमंग और उत्साह पैदा करती है। 3. शारीरिक तौर से दुर्बल व्यक्ति के लिए यह खास मुद्रा है। इससे इतनी शक्ति पैदा होती है कि कमजोर व्यक्ति शारीरिक और मानसिक दृष्टि से शक्तिशाली बनकर रोग के संक्रमण से दूर रह सकता है। 4. इस मुद्रा से विटामिन्स की कमी दूर हो जाती है। 5. इससे आँखों की रोशनी बढ़ती है। आँखों की किसी भी बीमारी में लाभदायक है। 6. थकान के समय करने से शरीर में नवशक्ति का संचार होता है। 7. प्राणमुद्रा से भूख-प्यास की भावना लुप्त होती है। 8. एकाग्रता का विकास होता है। प्र. 664. शंख मुद्रा किस प्रकार करें? उ. विधि- बायें हाथ के अंगूठे को दाहिने हाथ की हथेली पर रखकर दाहिने हाथ के बाएं अंगूठे सहित मुट्ठी बंद करके, बायें हाथ की तर्जनी के अग्रभाग को दाहिने हाथ के अंगूठे के अग्रभाग को