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________________ na मागधी तथा अठारह देशों की भाषाओं (6)ज्ञाताधर्मकथांग- इस छठे का मिश्रण होने से इसे अर्द्धमागधी आगम में धर्म कथाओं एवं कहा जाता है। यह भी कहा जाता है उदाहरणों का कथन किया गया कि यह भाषा मगध राज्य के आधे क्षेत्र में प्रचलित होने से अर्द्धमागधी 7)उपासकदशांग- प्रभुवीर के कहलाती है। यह भाषा वीर-काल में आनंद आदि प्रमुख दस श्रावकों जनसामान्य एवं सर्वत्र प्रचलित थी। का विवेचन इस सूत्र में है। प्र.586. अंग आगम कौनसे हैं? (8)अन्तकृत्दशांग- जन्म-मरण उ. बारह अंग आगम कहे गये हैं, जिन्हें की परम्परा का अन्त करने वाले द्वादशांगी कहा जाता है। साधकों का वर्णन इस सूत्र में है। (1)आचारांग- सुधर्मा स्वामी विरचित (9)अनुत्तरौपपातिकदशांग- इस आगम में उन साधकों की विवेचना इस सूत्र में मुख्य रूप से है, जो मृत्यु प्राप्त कर अनुत्तर श्रमणाचार का विवेचन है। विमान में उत्पन्न हुए हैं तथा पुनः (2)सूत्रकृतांग- तीन सौ पैसठ मनुष्य भव प्राप्त कर मोक्षगामी पाखण्डियों एवं मत-मतान्तरों का होंगे। ... वर्णन इस सूत्र में है। (10) प्रश्नव्याकरण- इस सूत्र में (3)स्थानांग- एक से सौ तक की हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्मचर्य संख्या वाली चीजें इस आगम में और परिग्रह, इन पंच आश्रवों का कही गयी हैं। एवं उनके संवर का वर्णन है। (4)समवायांग- एक से दस की __(11) विपाक सूत्र- इसमें उदाहरण संख्या वाली बातें इसमें वर्णित है। शैली में कर्म के सुख व दुःख रूप (5)व्याख्या प्रज्ञप्ति- भगवती के फल (विपाक) का वर्णन है। नाम से प्रसिद्ध इस विशाल आगम (12) दृष्टिवाद - यह आगम विच्छेद में जीव, अजीव, पुद्गल, आकाश, को प्राप्त हो चुका है। इसके पांच स्वमत, परमत, लोक, परलोक विभागों में से एक में चौदह पूर्वो आदि शताधिक विषयों से युक्त। का विवेचन था। छत्तीस हजार प्रश्नोत्तर हैं। प्र.587. महाराज श्री ! पूर्वांग साहित्य
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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