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________________ आत्म-कल्याणी : जिनेश्वर-वाणी प्र.580. जिनमें परमात्मा महावीर की वाणी उ. पांच भागों में - (1) अंग (2) उपांग गुंफित है, उन जैन शास्त्रों को (3) प्रकीर्णक (4) छेद (5) मूलक्या कहा जाता है? चूलिका। उ. आगम। प्र.584.आगमों की रचना किस प्रकार प्र.581. आगम से क्या अभिप्राय है? होती है? ___ 'आगम' शब्द निर्माण में 'आ' उपसर्ग उ. गणधर भगवंत प्रभु के सम्मुख और 'गम्' धातु है। जिज्ञासा प्रकट करते हैं- भगवं! किं आ यानि पूर्ण! गम यानि जानना, तत्तं? (प्रभो! तत्त्व क्या है?) तब गति, प्राप्ति / जिसके द्वारा पूर्णता की भगवान उन्हें त्रिपदी प्रदान करते हैंप्राप्ति होती है अथवा जो पूर्णता के उप्पन्नेइ वा, विगमेइ वा, धुवेइ प्रति गति करवाता है, उन्हें आगम वा। (उत्पन्न होता है, नष्ट होता है, कहा जाता है। स्थिर रहता है) इस त्रिपदी के माध्यम ग़ग--द्वेष से मुक्त तीर्थंकर को आप्त से गणधर भगवंत अन्तर्मुहूर्त मात्र में पुरूष कहा जाता है और उनकी वाणी अंग आगमों की रचना करते हैं। शेष को आगम कहा जाता है। उपांग, प्रकीर्णक इत्यादि सूत्रों की प्र.582. आगमों का निर्माण किस प्रकार रचना गणधरों के साथ-साथ होता है? श्रुतकेवली, दश पूर्वधर आदि करते आप्त पुरूष निर्दोष, पूर्वापरदोषमुक्त, हैं। प्रमाण रूप वे भी आगम ही कहे सर्वजन कल्याणकारी युक्तिसंगत जाते हैं। अर्थरूप उपदेश फरमाते हैं तथा प्र.585. आगमों की भाषा कौनसी है? गणधर भगवंत उन्हें सूत्रों में ग्रथित उ. आगम अर्द्धमागधी भाषा में लिखे गये करते हैं। .. हैं। सामान्यतः इसे प्राकृत कहा जाता प्र.583. आगमों को कितने भागों में है। परमात्मा आत्म–हितार्थ अर्द्धमागधी विभक्त किया जा सकता है? में धर्मोपदेश देते हैं। यह भाषा वस्तुतः **************** 245_ ******** ******
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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