________________ द्वितीय आवृत्ति मेरे हृदय के स्वर मेरे जैन गुरु प्रेरणास्पद आदरणीय उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. के पवित्र कर कमलों से मुझे 'जैन जीवन शैली' ग्रन्थ मिला / मैं स्वयं ऐसे ही ग्रन्थ की तलाश में था जिससे मुझे संक्षिप्त में जैन फलसफा समझ में आ जाये। जैन तत्त्वज्ञान का विस्तृत दर्शन इस किताब ने मुझे करवाया है। सम्पूर्ण वाचन-मनन के पश्चात् मेरी ज्ञान के प्रति रुचि बढ़ी, अनेक प्रश्नों के उत्तर भी मिले और अनेक प्रश्नों के उत्तर जानने की उत्सुकता प्रकट हुई। आदरणीय मुनि मनितप्रभसागरजी ने इस ग्रन्थराज में न सिर्फ जैन धर्म की दैनंदिन क्रियाओं को सरल एवं सुचारु ढंग से समझाया है अपितु हर क्रिया का हेतु व फल भी बताया है। वह भी इतनी सधी कलम से कि सामान्य श्रावक को भी आसानी से समझ में आ जाये। आज हमारी पीढी को मीमांसा बताना अत्यन्त आवश्यक हो गया है। ऐसा क्यों?' इस सवाल के जवाब इस पुस्तक में मिल जाते हैं। मुनिश्री ने सुन्दर व सहज ढंग से दर्शन मीमांसा, कर्म मीमांसा, विचार मीमांसा, आचार मीमांसा, आहार मीमांसा आदि लिखे हैं। साथ में इन्होंने जैन तत्त्वज्ञान-दर्शन को अहिंसा, सत्य आदि मूल सिद्धांतों से जोड़ दिया है। इससे हमारी जीवन शैली जैन तत्त्वों से संलग्न हो जाती है। जिस प्रकार हमारे न्यायदान क्षेत्र में न्याय का लक्ष्य प्राप्त करने के लिये हमें दीवाणी प्रक्रिया संहिता (CPC) व भारतीय साक्ष्य अधिनियमों (Law of Evidence) की आवश्यक सीढ़ियाँ चढ़नी ही पड़ती हैं, उसी प्रकार जैन धर्म का सर्वोच्च शिखर पाने के लिये हर श्रावक को चाहिये कि वह सर्वप्रथम 'जैन जीवन शैली' को आत्मसात करें, दिल में संजोये व जीवन में जीये।