________________ जैन पर्व साधना प्र.569. जैन पर्वो के सन्दर्भ में जानकारी दीजिये। उ. (1)कार्तिक सुदि एकम-नूतन वीर संवत् (वर्ष) का प्रारम्भ एवं गौतम स्वामी को केवलज्ञान की प्राप्ति। इस दिन तप-जप- आराधना आदि करके.गुरुमुख से नववर्ष का सप्त स्मरण, गौतम स्वामी का रास आदि मंगलपाठ सुनने चाहिये। (2) कार्तिक सुदि पंचमी-यह ज्ञान पंचमी का दिन है। इस दिन ज्ञान की आराधना करने से ज्ञान, बुद्धि एवं सौभाग्य में वृद्धि होती है। (3) कार्तिक सु. चतुर्दशी-चातुर्मासिक चतुर्दशी की आराधना / चार महिने के पापों का प्रतिक्रमण। * (4) कार्तिक पूर्णिमा- इस दिन शत्रुजय तीर्थ पर दस करोड मुनि मोक्ष में गये। सिद्धाचल पट्ट के सम्मुख चैत्यवन्दन करके तप आराधना करनी चाहिये। (5) मिगसर सुदि एकादशी-यह दिन मौन एकादशी के रूप में प्रसिद्ध है। 150 कल्याणकों की आराधना के इस महापर्व को उपवास, सम्पूर्ण मौन आदि करना चाहिये। **** ******* 237 (6)पौष वदि दसमी-पाप-ताप सन्ताप नाशक पार्श्वनाथ प्रभु का जन्म-कल्याणक। (7)माघ वदि त्रयोदशी - मेरु तेरस के रूप में प्रसिद्ध इस दिन आदिनाथ का निर्वाण कल्याणक हुआ था। (8)फाल्गुन सुदि चतुर्दशी -होली चौमासी चौदस की आराधना का पर्व। (9) फाल्गुन वदि अमावस- दादा श्री जिनकुशलसूरि स्वर्गारोहण दिवस / 'ॐ ह्रीं श्री जिनकुशलसूरि सद्गुरूभ्यो ह्रीं नमः' की बीस माला फेरे तथा जप, तप पूर्वक गुरूदेव के कृपापात्र बने। (10) चैत्र वदि अष्टमी-वर्षीतप का प्रारंभ, आदिनाथ प्रभु का जन्म एवं दीक्षा कल्याणक / (11) चैत्र सुदि सप्तमी से पूर्णिमा - शाश्वती ओलीजी की साधना / इन दिनों में नौ दिन शुद्ध आयम्बिल तप करें। गुरू मुख से नवपद की महिमा तथा श्रीपाल मयणा का प्रेरणास्पद कथानक ***** * **