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________________ उठाया जा सके तथा पड़ोसी सज्जन, समझदार एवं धर्म प्रेमी हो क्योंकि कहा गया है 'संसर्गजा गुणदोषाः भवन्ति' बुरी संगत से बुरे एवं भली संगत से अच्छे संस्कारों का निर्माण होता है, जैसे आर्द्रकुमार ने अभयकुमार जैसे निस्वार्थ एवं शीलयुक्त मित्र की संगति के फलस्वरूप संयम एवं मोक्ष को प्राप्त किया। प्र.560. घर कैसा होना चाहिए? उ. एक श्रावक अपना घर उपाश्रय को मानता है। वह प्रतिदिन सोचता है कि मेरा जन्म भले ही घर में हुआ पर मृत्यु उपाश्रय में गुरुमुख से धर्म-श्रवण करता हुआ पाऊँगा। मैं सामान्य व्यक्ति की तरह लेटे-लेटे नहीं, साधु की भाँति बैठे-बैठे जाऊंगा। .घर के प्रति मोह हेतु नहीं, जीवन यात्रा में संयम-साधना का अधिकतम संयोग मिले, इस हेतु पूर्वाचार्यों ने हित शिक्षाएं दी हैं- घर ऐसा हो, जिसमें अधिक जीव हिंसा न हो। - फर्श ऐसी न हो कि जिस पर चल रहे छोटे जीव जंतुओं की जयणा / न हो सके। ************** 229 - हवा एवं प्रकाश का पर्याप्त आगमन होना चाहिये ताकि दिन में ट्यूब लाईट एवं पंखे का उपयोग नहीं करना पड़े। - घर के कम से कम दरवाजे हो ताकि चोरादि का भय न रहे। - संगमरमर का पत्थर घुटनों का दर्द बढ़ाता है। संगमरमर का अर्थ ही है- साथ में मारने वाला। - शो-केस में साधु-साध्वी एवं उनके उपकरणों (पात्र, डंडा आदि) की प्रतिकृति रखे ताकि संयम की प्रेरणा मिलती रहे। हिंसक जानवरों के चित्र एवं अस्त्र-शस्त्र (तलवार आदि) दीवारों पर न लगावें। इससे घर में नकारात्मक (Negative) ऊर्जा फैलती है जो कि परिवेश को तनावग्रस्त, बेचैन एवं हिंसक बनाती है। चरित्रहीन नेता-अभिनेता-अभिनेत्री के फोटो न लगावे। इससे वातावरण विकृत एवं विचार दूषित होते हैं। - रसोई गृह एवं डाइनिंग टेबल पर बड़े-बड़े शब्दों में लिखकर बोर्ड *
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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