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________________ (1) अभिमान (2) लोभ / गन्तव्य स्थल तक नहीं पहुँच (i) समाज के मध्य अपना स्तर सकती, उसी प्रकार धन-साधन (Standard) ऊँचा उठाने के लिये, पर सन्तोष का Break न हो एवं मान-सम्मान की आकांक्षा के प्राप्त धन का समुचित महाचक्रवात में चक्कर लगाता हुआ सदुपयोग न हो तो वह अनर्थ के व्यक्ति अधिकतम पूंजी, वाहन, कूप में गिरा देता है। महल, व्यवसाय का विस्तार करता। हमारे पूर्वज कहा करते थेहै। यह सनातन सत्य है कि व्यक्ति गोधन गजधनवाजिधन,और रतनधन खान। धन-साधन की सुगंध से लोगों को जब आवे सन्तोषधन, सबधनधूलि समान।। आकर्षित कर. सकता है पर कुछ जब व्यक्ति सन्तोष रूपी समय के लिये। बिना गुणों का अलौकिक धन को प्राप्त कर लेता पूंजीपति ऐसा पुष्प है जिसका रूप हैं, तब हजारों स्वर्णमय मेरुपर्वत सुन्दर है पर जिसमें सुरभि नाममात्र भी मिट्टी के समान प्रतीत होते हैं। भी नहीं है। यदि जीवन में संस्कार, असन्तोष और अभिमान आदमी गुण और धर्म को स्थान दिया जाये को इच्छा के कांटों से लहुलुहान तो लक्ष्मीहीन होने पर भी महागुणी करके जीवन को कंटकवन बना पूणिया की तरह यशस्वी, देते हैं। यदि जीवन की चारों आदरणीय और अनुकरणीय जीवन दिशाओं में गुण-आकर्षण, का रचनाकार बन सकता है। विनम्रता, सरलता एवं सन्तोष के (ii) गाड़ी में यदि Break न हो अथवा चार महाद्वार खुल जाये तो जीवन होशियार चालक न हो तो गाड़ी नन्दनवन और वृन्दावन बन जाये।
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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