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________________ सच पूछिये तो व्यक्ति व्यवसाय प्रबन्धन से ज्यादा ध्यान यदि जीवन-प्रबन्धन पर दे और आकर्षक संभाषण शैली से ज्यादा ध्यान श्रेष्ठ जीवन-शैली पर दे तो अधिक सुखी हो सकता है - क्योंकि व्यवसाय-प्रबन्धन, सुन्दर संभाषण, नूतन परिधान-धारण से व्यक्ति सफल हो सकता है पर सुखी हो, यह जरूरी नहीं है जबकि जीवन और समय प्रबन्धन से व्यक्ति अवश्य ही सुखी हो सकता है और हर सुखी इंसान सफल व्यक्तित्व का निर्माता अवश्य होता है। फटे हुए दूध से भी जब रसगुल्ला बनाया जा सकता है तो इस सर्वोत्तम मानव जीवन से सर्वश्रेष्ठ सत्ता को अवश्य ही उपलब्ध किया जा सकता है। बस ! जरूरत है जीवन को सुन्दरतम तरीके से जीने की। मूल्य जीवन का नहीं, जीवन-शैली का होता है। मशीन को ठीक करने के लिये हथोड़ा लगाने का मूल्य एक रूपया है जबकि हथोड़ा कैसे और कहाँ लगाना, ., इसका मूल्य 999 रुपये हैं। यह कला ही तो है तो अनगढ़ प्रस्तर को तराश कर उसे पूजनीय प्रतिमा बना देती यह कला ही है जो शब्दों का समुचित संयोजन करके उसे मंत्र बना देती है। यह जीवन कला ही तो है जो नश्वर जीवन में शाश्वत प्रभुता को प्रतिष्ठित करती है अन्यथा व्यक्ति दिन भर पशु की भाँति बोझ ढोता है और रोटी की खोज में जीवन को पूरा कर देता है। किसी ने बहुत सुन्दर कहा है कला बहत्तर जगत में, जामे दो सरदार ! एक जीव की जीविका, एक जीव उद्धार।। शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति प्रथम कला है, मन और बुद्धि की इच्छाओं की पूर्ति मध्यम कला है एवं आध्यात्मिक विकास की कला उत्तम कला है। यह कितनी बडी विडम्बना है कि समस्त पदार्थों / सुविधाओं के उपयोग से अवगत / होने पर भी व्यक्ति जीवन-कला से सर्वथा अनभिज्ञ है। जब पानी, बिजली, धन का तनिक भी अपव्यय व्यक्ति को सह्य नहीं होता तब व्यर्थ जाती जिन्दगी को सार्थक बनाने की पहल क्यों नहीं होती? भौतिकता की अंधी दौड़ में सुख-शान्ति मिले, असंभव है। जिस सम्पदा की प्राप्ति में सिकन्दर ने जीवन पूरा कर दिया, उसके बदले एक पल भी नहीं मिल पाया
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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