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________________ कैसे करे भोजन? प्र.496.भोजन कैसे करें ? उ. यद्यपि मैं एक त्यागी श्रमण हूँ अतः भोजन करने की विधि का कथन मेरे लिए जिनाज्ञा का उल्लंघन है, तथापि उसमें कम से कम दोष लगे, इस हेतु से विवेक एवं जयणायोग्य बिंदु पूर्वाचार्यों की आज्ञानुरूप कहता हूँ(1)भोजन करने से पहले सोचे कि भव-भव से मैं खा रहा, पी रहा पर न कभी तृप्ति हुई, न हो सकती है। भोजन करने से नहीं, छोड़ने से तृप्ति व संतोष मिलता है। कितना अच्छा होता कि मैं आज तपश्चर्या करके आत्मा को ध्यान एवं ज्ञान की खुराक प्रदान करता। (2)हे प्रभो! मुझ पर इतनी कृपा करना . कि मैं शीघ्रातिशीघ्र अणाहारी पद को प्राप्त करूँ। (3)भोजन करने से पूर्व तीन बार नवकार मंत्र का स्मरण करें। (4)पृथ्वीकाय यावत् वनस्पतिकाय के जीव हमारे जीवन निर्वाह में उपयोगी बनते हैं। कृतज्ञ दृष्टि से उनके प्रति उपकृत भावों से हृदय को भावित करें कि तुमसे ही हमारा जीवन गतिमान है। (5)भोजन के प्रति शुभ भावना से हृदय को भावित करें कि हे अन्न देवता! तुम मेरे लिये ज्ञान, ध्यान एवं स्वाध्यायवर्द्धक बनना। ऐसा रस एवं ग्रन्थियाँ स्रावित करना, जिससे राग-द्वेष का अंधकार दूर हो तथा मेरे जीवन में समता और संयम का प्रकाश फैले। (6)भोजन करते समय क्रोध, राग व द्वेष के भाव न लाकर अममत्व भाव से भोजन करें। उससे वैराग्य, आरोग्य एवं सौभाग्यवर्द्धक रस स्रावित होते हैं। (7)दक्षिण दिशा एव विदिशा में मुख करके भोजन हेतु न बैठे। (8)जीभ को वश में रखकर, अस्वादभाव से शारीरिक अनुकूलताअनुसार भोजन करें। चटपटे, तीखे, मसालेदार, खट्टे व्यंजनों का त्याग करना स्वास्थ्य एवं साधना के लिये हितकारी होता है। (9)शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष की दस पर्व तिथियों को फल, हरी सब्जी आदि का त्याग रखना चाहिये। (10) भूख से कुछ कम भोजन करने से
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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