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________________ है। रक्त संचार में अनियमितता, दुक्कडं देवें एवं गलती के स्मृतिभ्रंश, असाध्य बीमारियों का अपुनरावर्तन का संकल्प करें। कारण होने से दक्षिण दिशा की तरफ इसी कड़ी में यह भी सोचे कि मैं उत्तम पाँव करके नहीं सोना चाहिये। कुल-जाति एवं धर्म को प्राप्त हुआ हूँ प्र.494. रात्रि शयन से पूर्व आत्म-चिन्तन अतः इस मनुष्य जीवन के स्वर्णिम किस प्रकार करें? अवसर का पूरा-पूरा उपयोग करना उ. शयन से पूर्व अरिहंत, सिद्ध, जिन धर्म एवं मुनि, इन चारों की शरण शुद्ध शास्त्रकारों ने कहा है- 'दुल्लहे निष्ठा से स्वीकार करें। खलु माणुसे भवे।' निश्चय ही आहार शरीर उपधि, पचखं पाप अठार। मनुष्य जन्म दुर्लभ है। अतः मरण पामु तो वोसिरे, जीवू तो आगार / / अधिकाधिक धर्म की आराधना करके अर्थात्- संसार वृद्धि के साधनों और मुझे एक/दो भवों में इस दुःखमय अठारह प्रकार के पाप स्थानों का असार संसार से मुक्ति पा लेनी है। जागरण पर्यन्त त्याग करता हूँ चाहे मैं पुण्योदय से पंचेन्द्रिय बना हूँ। मध्य में मृत्यु भी क्यों न आ जाये। शक्ति और बुद्धि मुझे प्राप्त हुई है, तब खामेमि सव्व जीवे, सव्वे जीवा खमन्तु मे। भी ऐसा कौनसा धर्म-अनुष्ठान है, जो मित्ती मे सव्वभुएसू, वेरं मज्झ न केणइ / / * मैं कर सकता हूँ परन्तु प्रमादवश, मैंने मन-वचन-काया से जिन जीवों अज्ञान और मोह के अधीन होकर नहीं के प्रति अपराध, पाप किया है, उन्हें कर रहा हूँ। खमाता हूँ, वे सभी मुझे क्षमा करें। ऐसे कौनसे दोष हैं, जिनका सेवन सभी जीवों से मेरी मैत्री है, किसी से * करके मैं महान् कर्मों का उपार्जन कर भी मुझे वैर-विरोध नहीं है। रहा हूँ। अब मुझे अपने दोषों को तत्पश्चात् चिन्तन करें कि आज मैंने देशनिकाला दे देना है। करणीय क्या-क्या नहीं किया और प्र.495. सोते समय किस भगवान का जाप अकरणीय क्या-क्या किया। करणीय करें? (सामायिक, प्रतिक्रमण, सुपात्र उ. दुष्ट-गंदे स्वप्नों के निवारण हेतु दानादि) की बार-बार अनुमोदना करें नेमिनाथ एवं पार्श्वनाथ का, सुख तथा अकरणीय (हिंसा, झूठ, चोरी, निद्रा हेतु चन्द्रप्रभु का, चोर आदि से अनीति, राग-द्वेष आदि) की पुनः पुनः अभय हेतु शान्तिनाथ का स्मरण/ निंदा-गर्दा करते हुए मिच्छामि जाप करें।
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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