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________________ खाना एवं वोहराना, इन दोनों राग-द्वेष के कचरे को बहारने में बातों का निषेध करें। प्रयत्नशील है अतः इनकी (31) भोजन आदि तैयार न हो तो ऐसा निरवद्य जीवन चर्या में अनुकूल न कहे कि महाराजश्री! अभी आहार प्रदान करके अपना भाग्य योग नहीं है।' अपितु वन्दना जगाऊँ। पूर्वक उनका सत्कार करें और (34) मंत्र-तन्त्र, सांसारिक-मुहूर्त, घृत, शक्कर, खाखरा, नमकीन व्यापार आदि भौतिक लाभ हेतु आदि जो कुछ प्रासुक सामग्री रास्ता दिखायेंगे, अतः इनकी उपलब्ध हो, उसका निवेदन अधिकाधिक सेवा-सुश्रुषा करूँ, करें। - इन भावों से मुक्ति/परमार्थ की (32) कदाचित् गाँव में कम घर हो यह प्रक्रिया स्वार्थ का पोषण, और विशाल श्रमण मण्डल पधार संसार का विस्तार और कर्मों का जाये तो कर्तव्यनिष्ठ श्रावक बंधन करवाती है। . भिक्षार्थ पधारे मुनिराज के साथ प्र.458. शास्त्रों में कितने प्रकार के पात्र पटेल, चौधरी, पुरोहित, माली कहे गये हैं? आदि शाकाहारी अजैनों के घर उ. तीन पात्र - (1) सुपात्र (2) पात्र (3) जाकर आहार का निवेदन करें। अनुकंपादि पात्र।। (33) सुपात्रदान के समय व्यक्ति को प्र.459.इन तीनों भेदों को स्पष्ट कीजिये। भाव जगत के प्रति सर्वथा सचेत उ. 1. तीर्थंकर, केवली, मुनिराज को रहना होता है। ये महाराज मेरे . सुपात्र कहा गया है। सम्बन्धी है अथवा गाँव के हैं 2. श्रावक-श्राविका, स्वधर्मी और अथवा मित्र है, इसलिये अच्छी सद्गृहस्थ पात्र कहलाते हैं। तरह से इनको वोहराऊँ' ऐसे 3. अपंग, गरीब आदि करूणापात्र विचार जब कभी मानस-कक्ष में अनुकंपादि पात्र कहलाते हैं। प्रविष्ट हो तो तुरन्त उनसे निवृत्त प्र.460. क्या अपात्र को दान देने से लाभ हो जाये। इसकी बजाय ऐसा होता हैं? सोचे कि त्यागी-विरागी मुनिवर उ. सुपात्र, पात्र और अनुकम्पा पात्र को ज्ञान-ध्यान की बुहारी से दान में उत्तरोत्तर अल्प पुण्य का बन्ध
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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