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________________ उपक्रम न करें। अशुद्ध मूल्यवान् पदार्थ की बजाय निर्दोष-विशुद्ध सामान्य पदार्थ प्रदान करना श्रेयस्कर एवं सुखकर कहा गया (24) कभी भी उनके साथ मृषावाद (असत्य) का प्रयोग न करें। सुपात्र दान के पावन लक्ष्य से यदि उनके निमित्त सामग्री बनाकर भी पूछने पर कहना–'महाराज साहब! ये हमारे लिये बनाया है, हम भी खाते हैं ऐसे वाक्यों का प्रयोग करके मोक्ष-साधना रूप गोचरी को दोषपूर्ण न बनावें / यह प्रक्रिया कर्म-परम्परा में अभिवृद्धि करती है। (25) कभी प्रशस्तरागवश यह कहना गुरुदेव! गर्मी अत्यधिक है, अतः मैं उपाश्रय में ही टिफीन में सामग्री ले आता हूँ, आप कष्ट मत उठाइये।' ऐसे अनर्थकारी वाक्यों से श्रावक स्व-आचार से तो पतित होता ही है, श्रमण को भी उनके आचार से भ्रष्ट करता है, परिणामतः दोनों दुर्गति के भागी होते हैं। (26) जिसके हाथ-पाँव प्रकम्पित होते हैं अथवा जिन्हें कम दिखाई देता है, ऐसे बाल अथवा वृद्ध से या ज्वर पीड़ित, कुष्ठी, अपंग, अन्तिम मास वाली सगर्भा और स्तनपान कराती स्त्री के हाथ से आहार लेना निषिद्ध है। (27) बर्तन मांजते, भोजन पकाते, कपडा धोते, अनाज बीनते, सब्जी संवारते आदि व्यक्ति (पुरूष अथवा महिला) के हाथ से आहार लेना निषिद्ध है। वे जिस वस्तु को स्पर्श करते हैं, वह भी अकल्प्य हो जाती है एवं उनका जिनको स्पर्श हो जाता है, वे व्यक्ति भी नहीं वोहरा सकते हैं। (28) आहार वोहराते समय यथासम्भव उसी पात्र से लेकर वोहराना चाहिये। अन्य कटोरे आदि में लेकर यदि वोहराना पडे तो साधु व श्रावक, दोनों को दोष न लगे अतः निजी उपयोग करने के पश्चात् ही श्रावक उसका प्रक्षालन करें। (29) चम्मच अथवा बर्तन में रखी हुई वस्तु को पात्र के समीप ले जाकर वोहरावे ताकि पात्र लिप्त . न हो। (30) चॉकलेट, बाजार के नमकीन मिष्ठान्न आदि अभक्ष्य पदार्थ
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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