________________ (12) गुरु अथवा मुनिवर पठन/, साधना करें। इस हेतु धारणा के पाठन में व्यस्त हो तो बीच में पच्चक्खाण करके पाप-मुक्त सुखशाता-पृच्छा आदि से उनके बने। स्वाध्याय एवं एकाग्रता में बाधा न (18) उपाश्रय में पूर्ण विवेक एवं श्रद्धा पहँचावे। का आचरण करने के उपरान्त (13) उपाश्रय में यथासम्भव गुरु बाहर निकलते समय गुरु वन्दन महाराज आदि से वार्तालाप करते पूर्वक तीन बार 'आवस्सहि' कहे। समय मध्य में मोबाइल से बात प्र.453.महाराज श्री ! आपके खरतरगच्छ करके उनकी आशातना कदापि न संप्रदाय में श्रावकों के द्वारा करें। साध्वीजी भगवंत को भी (14)उपाश्रय में झूठे मुँह प्रवेश न करें इच्छकार, अब्मुट्ठियो से वंदन तथा उनके सम्मुख न खाये, न किया जाता है, क्या वह शास्त्र पीये। सम्मत है? (15) स्नान आदि के कारण बाल उ. यद्यपि जैन संघ श्रमण प्रधान संघ है कच्चे पानी से भीगे हुए हो अथवा तथापि साध्वीजी भी साधु की भाँति शरीर, वस्त्र आदि बरसात के पानी वंदनीय है। यदि लिंग को वंदन होता से भीगे हो तो गुरु भगवंतों का तो हर पुरूष वंदनीय होता जबकि वंदना अहिंसा आदि पंच महाव्रतों को (16) उपाश्रय में कलह, कषाय आदि की जाती है और जिसने भी इन का सर्वथा त्याग करे / महाव्रतों को धारण किया है, वह पुरूष (17) यथासंभव सामायिक के वस्त्र हो या स्त्री, निश्चित रूप से वंदनीय, धारण करके सामायिक करें पूजनीय है। अथवा तत्त्व चर्चा पर्यन्त संवर की स्पर्श न करें।