________________ विज्ञान है, अपनी तकनीक है और अपनी जीवन शैली है। जैन धर्म के प्रत्येक सिद्धांत में अहिंसा और करूणा की पावन गंगोत्री बहती है। इस अपेक्षा से इसे 'अहिंसा धर्म' भी कहा जा सकता है। अहिंसा का सूक्ष्म विश्लेषण एवं आचरण ही जैन धर्म को जनधर्म के रूप में प्रतिष्ठित करता है। ___ अहिंसा प्राणीमात्र के लिये क्षेमंकरी है। अहिंसा समस्त सद्गुणों एवं शक्तियों की अधिष्ठात्री है। परंतु वह हमारे जीवन का अंग कैसे बने, हमारे आचरण का विषय कैसे बने, हम अपना जीवन अहिंसक शैली से कैसे जीयें, ये प्रश्न बहुत ही विचारणीय हैं। जीवन और जीवन शैली, दो भिन्न तत्त्व हैं। जो जीया जाता है, वह जीवन है परंतु जिस तरीके से जीया जाता है, वह जीवन शैली है। कोई भी कार्य यदि विधिवत्, निश्चित शैली के साथ किया जाय तो उसका परिणाम बहुत शुभ और सुखद आता है। जीवन जीने की कला ही एक जीवन शैली है, जो व्यक्ति के चिंतन और आचरण दोनों को प्रभावित करती है। जीवन शैली कोई जादू नहीं है कि डंडा घुमाया और सब कुछ बदल जाये / यह एक पद्धति है, एक प्रयोग है और एक अनूठा पुरूषार्थ हैं। . चिंतन के झरोखे से एक प्रश्न उभरता है- क्या भगवान महावीर के युग में कोई निश्चित जीवन शैली थी? इसका उत्तर सकारात्मक होगा। बारह व्रत श्रावक की जीवन शैली का प्रारूप है। उस शैली से जीने वाले श्रावकों की जीवन-गाथा अनेक शास्त्रों में गुंफित है। परमात्मा महावीर के प्रतिमाधारी आनंदादि दस विशिष्ट श्रावकों की व्रत-साधना उपासकदशा नामक अंग आगम में विस्तृत रूप से वर्णित है। आगम वर्णित श्रावक जीवन शैली गंभीर व एकनिष्ठ साधना से परिपूर्ण है। वर्तमान में इतनी कठोर एवं चुस्त जीवन चर्या यद्यपि संभव नहीं है तथापि प्रशस्त जीवन जीने के लिये धार्मिक व व्यावहारिक अथवा आध्यात्मिक व वैज्ञानिक मूल्यों को साथ-साथ जीना जरूरी है। इसी बात को केन्द्र में रखकर प्रस्तुत जैन जीवन / शैली ग्रंथ का सर्जन किया गया है। "जैन जीवन शैली' ग्रंथ पूर्णतया आगमिक सिद्धांतों से अनुप्राणित है। इसे जैन दर्शन का संक्षेप, सार-तत्त्व कहा जाये तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जैनत्व की आभा से परिपूर्ण बनने के लिये प्रस्तुत पुस्तक अपने आप में एक