________________ एवं शास्त्रीय विधि विधान का अवश्य भगवती सूत्र के प्रारम्भ में 'नमो ही ध्यान रखना चाहिये। अविधि एवं बंभीए लिवीए' कहकर ब्राह्मी लिपि अशास्त्रीय पूजा पाप बंध का कारण को नमस्कार किया गया है अतः जड बन जाती है। यथा-पुष्प पूजा स्वयं अपूज्य है, ऐसा कहना अप्रासंगिक है। खिरे हुए पुष्पों से करनी चाहिये। एक अश्लील चित्र देखने से जब मन आचार्य हरिभद्रसूरि विरचित पंचाशक में विकारों की उत्पत्ति संभव है तो प्रकरण की वृत्ति में नवांगी वृत्तिकार फिर प्रभु की वीतराग मुद्रा वीतरागी अभयदेवसूरि कहते हैं कि स्नान करने बनाने में समर्थ/ सक्षम कैसे नहीं हो वाले को पूजा अवश्यमेव करनी चाहिये परन्तु जिसने परमार्थ सकती? अर्थात् वीतरागी का स्वरूप प्रज्ञापूर्वक शरीर की शुद्धि का त्याग अवश्य ही वीतराग पद की प्राप्ति कर दिया है, उसे पूजा हेतु स्नान करा सकता है। करने की अनिवार्यता नहीं है। प्र.443. महाराजश्री! यदि प्रभु पूजन से प्र.442. महाराजश्री! मूर्ति तो जड है फिर मुक्ति की साधना साधी जा उससे परम पद की प्राप्ति किस सकती तो फिर आप पूजा क्यों प्रकार संभव है? नहीं करते हैं? यद्यपि चिन्तामणि रत्न एक जड उ. साधु-साध्वी भाव पूजा ही करते हैं, (पाषाण) है तथापि उससे इच्छित- द्रव्य पूजा नहीं / क्योंकि उसका फल वांछित पदार्थ अवश्यमेव प्राप्त होते संयम की प्राप्ति है। आर्द्रकुमार ने हैं। दूसरी बात जड होने से पदार्थ आदिनाथ की प्रतिमा से संयम साधा आत्म कल्याण में उपयोगी नहीं है, था अतः संयम फल की प्राप्ति हो जाने ऐसा कहना नासमझी के अतिरिक्त से द्रव्य पूजा नहीं करते हैं। कुछ भी नहीं है। प्र.444.महाराजश्री! आप कहते हैं- प्रभु परमात्मा की देशना रूप शब्द भी जड प्रतिमा परमात्म स्वरूप है। परमात्मा ही हैं। फिर भी उनके द्वारा जीव का जीव एक है और प्रतिमाएँ मुक्ति को प्राप्त कर लेता है, उसी हजारों-लाखों-करोड़ो, तो फिर प्रकार जड होने पर भी प्रभु प्रतिमा एक जीव की इतनी प्रतिमाओं में मुक्ति-पथ में सहायक है। प्रतिष्ठा किस प्रकार संभव है?