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________________ आचार्य देवेन्द्रसूरि विरचित चैत्यवंदन सेवन करना 6. थूकना 7. श्लेष्म - भाष्य में जयवीयराय सूत्र में 79 अक्षर डालना 8. लघुनीति करना 9. बड़ी संख्या का निर्देश किया है और नीति करना 10. जुआ खेलना। आभवमखण्डा तक 79 अक्षर हो जाते प्र.440. प्रभु पूजा से आठ कर्मों का नाश हैं। इससे स्पष्ट ही है कि मूल में कैसे होता हैं? जयवीयराय दो गाथा वाला ही है और उ. 1. प्रभु-गुणगान से ज्ञानावरणीय कर्म पूर्व में तपागच्छ मे भी इतना ही बोला __ का क्षय होता है। जाता था। गणधर विरचित इस सूत्र 2. प्रभु दर्शन से दर्शनावरणीय कर्म में शेष गाथाएँ प्रक्षिप्त होने से हमारी का क्षय होता है। परम्परा में नहीं बोली जाती हैं। 3. जयणायुक्त पूजा से अशाता प्र.439.जिनमंदिर संबंधी आशातनाएँ बताओ। वेदनीय कर्म का क्षय होता है। उ. जिनमंदिर की उत्कृष्टतः चौरासी, 4. जीव-अजीव के ज्ञान से मोहनीय कर्म का क्षय होता है। मध्यम चालीस एवं जघन्यतः दस आशातनाएँ शास्त्रों में वर्णित हैं। 5. अक्षय स्थिति युक्त अरिहंत के पूजन से आयुष्य कर्म का क्षय 1. उत्कृष्ट आशातना- जिन प्रतिमा होता है। भंग करना, चोरी करना, उसके 6. अनामी प्रभु के नाम स्मरण से नाम थूक आदि अशुचि लगाना, ये कर्म का क्षय होता है। उत्कृष्ट आशातानाएँ हैं। 7. प्रभु वंदन से नीच गोत्र कर्म का 2. मध्यम आशातना- अस्वच्छ वस्त्रों क्षय होता है। से जिनपूजा करना, जिनबिम्ब को भूमि पर रखना, ये मध्यम आशातनाएँ 8. प्रभु भक्ति में शक्ति-प्रयोग से अन्तराय कर्म का क्षय होता है। हैं। प्र.441.महाराजश्री! प्रभुपूजा में अप्काय 3. जघन्य आशातना- निम्नोक्त जघन्यतः दस आशातनाओं को आदि की विराधना/हिंसा होने से पाप लगता है या नहीं? अवश्यमेव छोडना चाहिये। र उ. दस आशातनाएँ - 1 मंदिर में / प्रभु पूजा में यद्यपि हिंसा होने से पाप लगता है तथापि परमार्थ रूप सम्यक्त्व पान सुपारी खाना 2. पानी पीना 3. और सिद्धि की प्राप्ति होने से लाभ भोजन करना 4. जूते पहनना 5. मैथुन ज्यादा है। फिर भी प्रभु पूजा में विवेक
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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