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________________ अतिरिक्त धूप,दीप,आरती,चैत्यवन्दन आत्मविजेता बनता है। आदि नहीं करने चाहिये। 4. अनामिका का संबंध हृदय से है। 5. प्रभु के लंछन, हथेली एवं श्रीवत्स इसे स्फुरायमान करके भक्त पूजन की पूजा नहीं करनी चाहिये। के द्वारा प्रभु को अर्पित-समर्पित 6. प्रभु पूजा करते समय तीन बातों होता है एवं भगवद् भक्ति में का त्याग करना चाहिये- 1. शरीर एकाकार बनता है। को खुजलाना / 2. खंखारा करना। प्र.429. महाराजश्री! पार्श्वनाथ प्रभु के 3.स्तुति-स्तोत्र बोलना अथवा फण की पूजा अनामिका से करनी बातचीत करना। चाहिये अथवा अंगूठे से? 7. प्रभु के सम्मुख पग पर पग उ. पार्श्वप्रभु के उपर रहे हुए फण चढ़ाकर नहीं बैठना चाहिये। परमात्मा का अंग नहीं है, वह धरणेन्द्र प्र.428. प्रभु एवं गुरु की पूजा अनामिका देव का प्रतीक है, अतः उनकी पूजा से ही क्यों की जाती है? अंगूठे से ही करनी चाहिये। पूजा, उ. - 1. अनामिका में पीयूष ग्रंथी होती है। क्रम, केसर उपयोग आदि में भी उसका सम्बन्ध मूलाधार से है, जो विवेक रखना चाहिये। शक्ति का केन्द्र है। इसके प्र.430. महाराजश्री! मंदिर में प्रभु के जागरण से चित्त वृत्ति निर्मल, आस-पास की देवकुलिकाओं में स्थिर एवं दृढ बनती है एवं शरीर स्थित दादा गुरुदेव को वन्दन नहीं में शक्तियों का संचार होता है। करना चाहिये। ऐसा हमने अन्यों से 2. अनामिका में पृथ्वी तत्त्व प्रधान रूप सुना है, तो क्या ऐसा करने से से रहा हुआ है। पृथ्वी तत्त्व की परमात्मा की आशातना होती है? जागृति से व्यक्ति शांत, सहिष्णु उ. नहीं ! जिस प्रकार घर में माता-पिता और गंभीर बनता है। के सम्मुख, चाचा-चाची, बडे भाई3. सामुद्रिक शास्त्र - विज्ञानानुसार बहिन आदि को प्रणाम करने में कोई अनामिका क्षत्रिय अंगुली है। बाधा नहीं है। मंदिर में प्रभु के सम्मुख क्षत्रिय यानि विजेता। स्वयं के शासन भक्त देवों का अभिवादन कषायों, दोषों और दुर्गुणों को किया जाता है, उसी प्रकार दादा जीतकर व्यक्ति वीतरागी एवं गुरुदेव को वंदन व उनका गुणोत्कीर्तन
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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