SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम संस्करण से मंगलम् जैन दर्शन अपने आप में जीवन जीने की कला है। इसमें अतीत, वर्तमान और भविष्य का संतुलन है। जो व्यक्ति जैन दर्शन का रहस्य समझ लेता है, वह व्यक्ति वर्तमान में दुख मिलने पर भी दुखी नहीं हो सकता और सुख मिलने पर उछल भी नहीं सकता। अद्भुत और अनूठा है परमात्मा का दर्शन! यह अतीत का प्रायश्चित्त, वर्तमान का आनंद और भविष्य का महोत्सव है। जैन दर्शन के रहस्य को समझाने वाले ग्रन्थ बहुत प्रकाशित हुए हैं। पर एक ऐसे ग्रन्थ की आवश्यकता सदा महसूस की जा रही थी, जो सरलता से जैन दर्शन के समस्त पहलुओं को समझा सके। प्रिय मुनि मनितप्रभ ने विषयबद्ध इस ग्रन्थ की रचना करके एक कमी की पूर्ति तो की ही है, समाज को जैसे एक उपहार अर्पण किया है। अपनी विशिष्ट दृढ़ संयम साधना और स्वाध्याय का वातावरण... लम्बे और थका देने वाले विहार... फिर भी वह लेखन के लिये भी पर्याप्त समय निकाल लेता है, यह अपने आप में अनुमोदनीय अचरज है। ब्यावर चातुर्मास में प्रारंभ इस ग्रन्थ को अगले तलोदा चातुर्मास से पहले ही पूर्ण कर लिया / अल्पकाल में ही उसने तत्वज्ञान आदि विषयों पर उत्कृष्ट ग्रन्थों की श्रृंखला प्रस्तुत कर दी है। जान ___उसके वर्तमान से भविष्य का यथार्थ अनुमान लगाया जा सकता है। ___ मैं उसके उज्ज्वल भविष्य के प्रति आशान्वित हूँ। निश्चित ही यह ग्रन्थ सभी के लिये समादरणीय बनेगा। म/game मणिप्रभसागर
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy