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________________ 145 148 160 163 165 173 177 181 183 (जैन आचार मीमांसा) 38.- प्रातः जागरण विधि 39. जिन मंदिर दर्शन एवं पूजन विधि 40. कैसे सुने प्रवचन? 41. उपाश्रय में कैसा हो आचरण हमारा? 42. सुपात्रदान की विधि 43. श्रावक जीवन की साधना 44. धर्म के चार प्रकार 45. तप के बारह भेद 46. रात्रि शयन' से पूर्व आत्म-चिन्तन (जैन आहार मीमांसा 47. कैसे करें भोजन? 48. अभक्ष्य का भक्षण : बढे .जन्म-मरण 49. सप्त व्यसन : नरक का द्वार 50. द्विद्वल अर्थात् पापों का दल दल 51. रात्रि भोजन : दुर्गति का कारण 52. चलित रस का करें निषेध / 53: अनन्तकाय का भोजन : अशाता का सर्जन 54. मजेदार (?) पदार्थों का परिहार 55. जितनी जयणा, उतनी शाता 187 191 191 196 199 202 204 207 212 217 220 (जैन जीवन मीमांसा) 56. बने हमारा जीवन...खुशियों का मधुबन 57. समझ का उपयोग : शान्ति के प्रयोग 58. नीति-न्याय से करें व्यवसाय 59. कैसा हो घर-गाँव हमारा? 60. मृत्यु कैसे बने महोत्सव? 224 228 233
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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